Monday, February 25, 2008

प्रथमांतिम इच्छा 81

जब तक हिलेंगे होंठ

मैं तुमको

चूम तो सकूँगा ही


सागर में समा जाये सूरज

तब तक देखूँगा बाट

तुम छिटकती रहो / दूर ही दूर

खस की गंध सी महकोगी


जब तक अलविदा कहे

आखिरी साँस

मैं तुमको

सूँघ तो सकूँगा ही


जीवन आर्द्र है

है धूप भी तीखी


तुम देखती रहो / नूर ही नूर

सन्ध्या-सुबह सी साथ होगी


जब पगडंडियों पर थम जायें

पैर थक कर

उस आखिरी कदम पर

मैं तुमको

थाम तो सकूँगा ही

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