सरिता में खिली `सरोज' को
१. शब्द नहीं ध्वनि हो तुम
२. तुम हो नहीं हूँ मैं
३. दर्द की दवा
४. एक उदास चाँद
५. पलों के पहाड़
६. बगरो बसन्त है
७. अपरिचित आवाज़
८. शरद-पूनो की रात
९. चोरी कभी कभी
१०. दुर्लभ दर्शन
११. मौन सम्वाद
१२. बिन तुम्हारे
१३. नहीं बदली इंतजार की सूरत
१४. तुम ही तुम
१५. अभिव्यक्ति का संकट
१६. नाम तुम्हारा
१७. तुम और मैं
१८. पत्थर के आँसू
१९. साझी अनुभूति
२०. गूँगी खबर
२१. पेड़ों के चुम्बन
२२. नज़रें इनायत
२३. रंगोली
२४. सुंदरतम साक्षात्कार
२५. जुगनुओं के साथ
२६. गंध
२७. बिखरे प्रेम पत्र
२८. उलझा धागा है प्यार
२९. तुम्हारे लिये
३०. बाकी बचा हुआ समय
३१. दूर पास का तिलस्म
३२. थकान की व्यस्ततायें
३३. दर्पण पर बिन्दी
३४. एक और रूप
३५. कही-अनकही
३६. बिदा-गीत
३७. याद
३८. जीवन वाटिका
३९. सुबह से शाम
४०. अप्राप्य पत्र
४१. अपना घर
४२. मेरा रंग
४३. अस्पर्श स्पर्श
४४. मेरी-तुम्हारी नींद
४५. सुन रही हो ना!?
४६. उपलब्धि
४७. साँस की फाँस
४८. प्रेम का घरौंदा
४९. मिलन
५०. श्रृंगार
५१. हाथों में हाथ
५२. मौन सम्वाद
५३. करें शुरु एक जीवन नया
५४. गुनगुनाहट
५५. खिलने लगते हैं प्रश्न
५६. मुझे निहार लो तुम
५७. बात एक रात की
५८. इंतजार की उम्र
५९. प्रेम का मान
६०. मेेरी शक्ल हो जाओ
६१. वक्त की कल्पना
६२. स्वप्न का जागरण
६३. देह की दीवार
६४. साँस मेरी महक रही
६५. आहट सुबह की
६६. पत्तियों से छनती धूप
६७. नज़रबंद
६८. चपला
६९. रोमान की लहर
७०. सिहरन की आँच
७१. अनुभूतियाँ
७२. बहार का इंतज़ार
७३. चेहरा दिल होता है
७४. अहसास
७५. पर या पैर
७६. कही-सुनी
७७. कुछ और नहीं
७८. क्या बतायें
७९. जीवन की तलाश
८०. बुढ़ाते माँ बाप
८१. प्रथमांतिम इच्छा
शब्द नहीं ध्वनि हो तुम
शब्द नहीं
ध्वनि हो तुम मेरी कविता की
एक अनुगूँज
झंकृत करती उस कारा को
बंदी है जिसमें आत्मा मेरी
रक्ताक्त हैं अँगुलियाँ
खटखटाते द्वार अहर्निश
नहीं होते दर्शन
मैं चिर प्रतीक्षित
व्याकुलता हो गई तिरोहित
न कोई तृष्णा / न मरीचिका
न दौड़ता है मन
अंतरिक्ष के आर-पार
लगाती रहो टेर पर टेर
खुलेंगे एक दिन
इस पिंजर के द्वार
भला जी कर के भी
कौन सका है जी
अन्तराल में
निहारता रहता हूँ छवि
मन है अतिशय उदार
दिखला देता है ध्वनि विरल को
एक नहीं / कई क्षण / कई बार
मत छुओ मन को
हो जाओ मन के पार
नहीं शेष कोई आग्रह
नहीं उठती हिलकोरे ले चाह
कभी नहीं ढूँढी मैंने
कभी नहीं देखी तेरी राह
भला कौन कर सका
आँखें न हों गीलीं
मुटि्ठयों में कैसे हो बंद
शून्य का आलिंगन
अस्पर्श / अब नहीं बढ़ाता संताप
मौन / केवल मौन
अखण्ड चराचर में
निष्कम्प ज्योति सा यह सम्बन्ध
नहीं किसी ने
अब तक परिभाषा दी
शब्द नहीं
ध्वनि हो तुम मेरी कविता की
तुम हो नहीं हूँ मैं
मैं देता हूँ
तुम लेती हो
स्पर्श / प्रेम / उष्मा / जीवन
मैं देता हूँ / आकाश हूँ
तुम लेती हो / धरती हो
जो जो / जितना-जितना
लेती हो
कई-कई गुना कर
कर देती हो वापस
तुम धरती हो
पूरी की पूरी / आकाश की
पैरों के नीचे ठोस
हमेशा जुड़ीं
पूरी देह में आँखें ही आँखें
घूमती रहतीं / मुझे निहारने
समूचा का समूचा
मैं आकाश हूँ
पता नहीं / किस-किस धरती का
और नहीं भी / किसी का भी
पूरा का पूरा
देखता दूर-दूर से
जो जो देता
लेने वापस कई-कई गुना
सिर्फ निहारता
मिल नहीं सका तुमसे
अब तक
तुमने ओढ़ रखे हैं
कई-कई रंग
मैं बिखरता रहा
टुकड़े-टुकड़े
देखने तुम्हें
आता रहा / जाता रहा
तुम अमर हो
जैसे कल्पना
तुम सफल हो
जैसे सपना
तुम सजल हो
जैसे आँख
तुम सक्रिय हो
जैसे पाँख
तुम धरती हो
मैं तुम्हें घेरता हूँ
बने रहने को
तुम धरती हो
तुम हो
मैं आकाश हूँ
नहीं हूँ
दर्द की दवा
श्वाँस गंध से ही
जान जाता हूँ
हो चुकी उपस्थिति तुम्हारी
उतना ही गर्म हो जाता
वातायन हमारा
जितना शाम को गर्मा देते हैं
झिलमिलाते
अनन्त दूरियों से झाँकते / सितारे
तुम्हारी पगध्वनि से जान जाता हूँ
तय कर ली है
तुमने / कितनी दूरी
और एक अँगुली रख दी
ठीक वहीं पर
दर्द टीस रहा था जहाँ पर
तुमसे बेहतर भला और कौन जान सकता है
दर्द मुझे होता है कहाँ पर
मैं इतना भुरभुरा हो गया
अगरबत्ती की राख जैसा
जमाने ने जैसा चाहा / वैसा उड़ाया
धूल से भी गया-बीता
मैं संतुष्ट और प्रसन्न हूँ
अग्निद्वार से खरी / निकली
गंध बन फैल गया हूँ
हमारे वातायन में
तुम्हारी श्वाँस गंध को
समेटने और सहेजने के लिये
जल कर
राख होकर
अदृश्य होकर
बिखर गया हूँ चतुर्दिक
गंध होकर
एक उदास चाँद
छटते ही नहीं बादल
किरणों को देते नहीं रास्ता
उमड़ घुमड़ कर
गरज बरस कर
सोख लेते ध्वनि सारी
बजती ही नहीं पायल
स्मृति का देती नहीं वास्ता
सिसक झिझक कर
कसक तड़फ कर
रोक लेती चीख सारी
दिल ही नहीं कायल
खुशबू ऐसी फैली वातायन में
निरख परख कर
बहक महक कर
टोक देती रीत सारी
दिखता ही नहीं काजल
चाँदनी ऐसी बिखरी उपवन में
घूम घूम कर
चूम चूम कर
रो लेती नींद सारी
तुम नहीं हो पास
आज चाँद बहुत उदास है
पलों के पहाड़
न जाने कितनी
पूख्रणमाओं के बाद
चाँदनी फिर खिली
एक और बार
उड़ा गगन में
एक पंछी
डैनों की हिलोर
स्तब्ध हृदय में
प्रतीति थाप सी
आशाओं में उमड़ा
फिर से ज्वार
रागिनी फिर सजी
एक और बार
न जाने कितनी
पूख्रणमाओं के बाद
थिरकी भावना भी
ठिठकी थी रूप सी रूपसी
सारे ही दृश्य
हो गये अदृश्य से
बिखरी थी वातायन में
एक गंध निर्गंध भी
रातरानी सी महक गई
एक और बार
न जाने कितनी
पूख्रणमाओं के बाद
उड़ी सुधियों पर
सदियों की जमी गर्द
पर्त-दर-पर्त
काटे हैं कितने ही
पलों के पहाड़
भाषाओं में सिमटा
कितना ही दर्द
जिन्दगी जी ली
एक और बार
न जाने कितनी
पूख्रणमाओं के बाद
बगरो बसन्त है
जोड़ों में दिखें
दाना चुगते परिन्दे
न ललचाये मन
धूप सेंकने
सकुचायंे लिहाफ़ों के
साज़िन्दे
गुनगुनाहटें
गुनने लगें वन
महकने लगे
सूरज का यौवन
रक्ताभ हो
वृक्षों से झाँके
चन्द्रमा
कपोलों पर लगे दौड़ने
लालिमा
टूटने लगे
नींद की एकासना
मुहूर्त की दस्तकें
हो विदेह की
उपासना
गोद में छिपाकर
दिन भर की धूप को
फिरने लगे
नमी की गंध
बगरो है बसंत
ले लो
पद्माकर की सौगंध
अपरिचित आवाज़
एक उदासी
मुझमें प्रवेश करती जा रही है
कम होती जा रही है
अपरिमित आस्था
तुम्हारे अद्भुत सामर्थ्य में
तुम्हारे अनुपम सौन्दर्य में
तुम्हारे तीखे दर्प में
एक प्यास
मुझमें बुझती जा रही है
बढ़ती जा रही है
अनिश्चित आशंका
हमारे अद्भुत विकास में
हमारे अनुपम इतिहास में
हमारे तीखे दर्द में
एक फाँस
मुझमें धँसती जा रही है
मौन गूँजती जा रही है
अपरिचित आवाज़
किसी के अद्भुत आलाप में
किसी के अनुपम संताप में
किसी के तीखे गान में
शरद-पूनो की रात
तेरी दहकाई रोशनियों में
गुम हो जाती है
चाँदनी मेरी
वो भी शरद-पूनो की रात
मेरा वश चले तो
बुझा दूँ सारी बत्तियाँ
मेरी दृष्टि जाती है जहाँ तक
कम से कम तो वहाँ तक
अँधेरे में ही खिलता है चाँद
और आँख-मिचौली खेलती है
चाँदनी साथ अँधेरे के
मैं पपीहा सा राह तकता
आखिर कब दिखे स्वाति नक्षत्र
पर तुम तो गुम रहती हो
बत्तियों के बुझ जाने तक
रोशनियों के बीच
दृष्टि-ताल में तैरतीं
वो भी शरद-पूनो की रात
चोरी कभी कभी
हाँ / करता हूँ / मैं भी
चोरी कभी-कभी
कर लेता हूँ चोरी कभी-कभी
सुनसान रातों मे
टहलता मरोदा की सूनसान सड़कों पर
बातें करता ऊँचे-ऊँचे पेड़ों से
नज़र बचाकर तारों की
तोड़ लेता हूँ कुछ फूल मोंगरे के
ताकि महका सकूँ
घर के उस कोने को
पाती है जहाँ विश्राम प्रिया मेरी
होता है यह अपराध
जाने-अनजाने में
मैंने किया सर्वदा
जब-जब अवसर मिला
तभी-तभी
हाँ / कर लेता हूँ / मैं भी
चोरी कभी-कभी
दुर्लभ दर्शन
दिखता नहीं अब
चाँद पूरा साफ-साफ
आँखें हो चलीं बूढ़ीं
अपने मन से बह रही हो
हवा ऐसी दिखती नहीं अब
खुश़बू हो गई लापता
बातें हो चलीं झूठीं
कहाँ है अब कोई जो चल रहा हो
कारवाँ ऐसा दिखता नहीं अब
मंज़िल हो गये किस्से तिलस्मी
रातें हो चलीं जूठीं
सदी की सदी / सरक रही है
व्यग्रता ऐसी
प्रयासों की दिखती नहीं अब
साक्षात्कार सूरज का कहाँ नसीब
साँसें लग रहीं रूठीं
मौन सम्वाद
तुमने कहा मुझसे
मत टोको मुझे, मत रोको मुझे
कह-कह कर ऐसा
की अपनी मनमानी
मेरे हिस्से आया मौन
कल तक बँधी थी पट्टी आँखों पर
अब ताला है मुँह पर
कुछ सुन लेतीं मेरी भी
नहीं, कुछ खास नहीं है कहने को
तुमको ही टाल नहीं पाता कभी
तुम्हारा कहना जरा सा
बड़ा भारी लगता है
जैसे हो बारिश सीने पर दिसम्बर के
कम भासती है लू, मई के महीने में
मत कहो, कम से कम
तुम तो मत ही कहो
अँगुली उठाती हो
हवा की इस थिरकन से
मैं लगता हूँ समाने धरा की कोख में
गिर जाता हूँ उस नज़र से
देखता हूँ खुद को जिस नज़र से
प्रेम ने ही बाँधी थी कभी आँखों पर
सम्बन्धों में भी कुछ शर्त होती है
कितनी भी ठोस क्यों न हो जिन्दगी
सिद्धान्त, विचार, आदर्श और अनुभूतियाँ
सब में पर्त होती है
खुशी से दिन बीता
बीती शाम कहकहों में
सुबह नज़र आते ओस, कहते
रोना भी है जिन्दगी में
दृष्टि इतनी सबल है
ध्वनि को कष्ट मत दो
दा,े मुझे मौन दो
जिन्दगी की कौंध दो
न हो ध्वनि तदुपरान्त
मुझे मौन से
प्रेम दो, मौन दो
मौन से
बिन तुम्हारे
रात के पहले प्रहर से
डूबने लगता है मन
डूबते सूरज के साथ
बिन तुम्हारे
हृदय के घाव की लाली से
लोलित / दिग्-दिगन्त
बिन तुम्हारे / पास के अहसास के
बिन तुम्हारे / उगलता है आग चाँद भी
स्मृतियों के तारे / लगते हैं टिमटिमाने
काटती है शीतल मंद समीर / बिन तुम्हारे
तारों भरा आकाश
देता ही है सुख / खा़लिस सुख
सर्वदा तुम्हारे पास होने पर
लगती है दूरी भली / तारों की
तुम्हारे दूर होने पर
नापता हूँ / उस पैमाने से
दूरी तुम्हारी / बिन तुम्हारे
कर लेता हूँ याद / स्वाद चुम्बनों के
और फिर उतर आती है रात
कान / खड़े हो जाते हैं
सुनने को आहट / हल्की / हवा सी
तुम्हारे चलने-फिरने की / आहट
व्याकुल करती हैं / चौकाती हैं
पदचापों की मृग-स्वप्निकायें
जीने में कोई स्वाद नहीं / बिन तुम्हारे
ढॅक लेता है आँखों को
यादों से उतरा / उजरा रूप
यह भी न हो दूर / सोच कर
ढलक जाती हैं पलकें
गहरी होती जाती रात / लगता
बिखर गईं तुम्हारी अलकें
गहरी होती जाती निद्रा / साथ तुम्हारे
पर कोई नहीं उठाता / ऊगते सूरज के साथ
ऊगते सूरज के साथ
डूबने लगता है मन / बिन तुम्हारे
रात के पहले प्रहर से
डूबने लगता है मन / डूबते सूरज के साथ
बिन तुम्हारे
ऊगते सूरज के साथ / डूबने लगता है मन
बिन तुम्हारे
नहीं बदली इंतजार की सूरत
धुँधलका सुबह का / बना सांध्य का झुटपुटा
शीतल समीर भागा / डर से सूरज के
लगे लहराने आँचल श्यामल / मटमैले
घूम-फिर कर / फिर सो गई चिड़िया
वेणियों में महकने लगे
या महकने लगे वेणियों से / गंधराज
कुछ दरक रहा है / सैलाबों से लड़ता है मन
छवि दर्पण पर भारी है
देती होंगी किन्हीं को
यादें जीने का सहारा
मन के हर चैनल पर / चित्र तुम्हारा
सब कुछ धुला-धुला सा
सब कुछ बदला मौसम सा
नहीं बदली इंतजार की सूरत
कौन बताये / कौन पुजारी / कौन मूरत
तुम ही तुम
तुम्हे, कभी नहीं
कह पाया तुम
जीवन में मेरे
सपनों सा तैरे
साथ तुम्हारा
कभी किनारा दिखा नहीं
रेखाओं में / सब कुछ गुम
साथ मेरे
कुछ यादें / कुछ सैरें
ख्याल तुम्हारा
कभी अकेला हुआ नहीं
हवाओं में / तुम ही तुम
अभिव्यक्ति का संकट
क्या बताऊँ
शब्द नहीं हैं
अभिव्यक्त करने को
क्या था अहसास
जब टपके थे आँसू तुम्हारे
होठों पर मेरे
क्या बताऊँ
देह होती है गर्म
पर सर्द रातों में
गुनगुने लिहाफों में
कुछ अधिक गर्म
लगती है देह
जैसे कुनकुने पानी से
सिक रही है देह
दिल, दिमाग और आत्मा तक
क्या बताऊँ
भरपूर नज़र भर
देख लेने की कोशिश
कुछ और नजर नहीं आता
न दुनिया न दीन
खुद भी खोता जाता
लगता जैसे थम गया सब कुछ
स्थिर हो गई धरा
क्या बताऊँ
रसोईघर से आती
कई मिली-जुली गंध
फर्क साफ समझ में आता
घर में होने और न होने का
छलक जाता मन
घर में होने और न होने पर
भर लो मन
जीवन के रंगों से
सजा लो आल्बम
खट्टे-मीठे प्रसंगों के
स्मृतियों के आवरण में
साँझ जब खेवेंगे
जीवन की नैया
जब टहलेंगे साथ
या छूट जायेगा साथ
इस दुश्चिन्ता की व्याकुलता
क्या होगा अहसास
कैसे करूँ व्यक्त
शब्द नहीं हैं
अभी जीवन के पास
नाम तुम्हारा
अँधेरों में
साँप हो जाती है
रस्सी भी
नाम में भी
काम में भी
वही होते हैं जज्ब़े
वही होते हैं अहसास
कोलतार पर पड़ती बारिश
ज़ेहन को कुरेदती
जगा देती दिल में
मिट्टी की पहली सोंधी बास
शहर में भी
गाँव में भी
जब मिले और फिर
झुक जाये नज़र
नज़ारा समेट कर
नज़रों में
सब कुछ मिल जाता है
सब कुछ खो जाने के बाद
खुद जाता है
नाम तुम्हारा ज़ेहन में
भोर में भी
साँझ में भी
तुम और मैं
तुम इतनी पास हो मेरे
तुम इतनी साथ हो मेरे
जैसे धरती और गगन
खो जाया करता था मैं
मड़ई-मेलों की मस्तियों में
मन की बंजारा बस्तियों में
डूब जाया करता था मैं
नदी के जल में
भीतर / और भीतर बहता हुआ
आज भी जब घिर जाता हूँ
डूब जाया करता हूँ मैं
अंतस्तल की गहराई में
लगते हाथ और फिसलते जाते सीप
स्मृतियों के / आशाओं के
मैं उठता जाता अनुभूतियों से
ऊपर / और ऊपर सहता हुआ
तुम इतनी पास हो मेरे
तुम इतनी साथ हो मेरे
जैसे गंध और पवन
पत्थर के आँसू
मत बहाओ
आँसू सामने मेरे
तुम्हारी आँखों से नि:सृत
मेरी आत्मा तक रिस जाते हैं
पत्थर का मन भी
पसीजता है
बरसात लगती है घेरने
एक लपट सी उठती है
खौलने लगता है रूधिर
शिराओं के भीतर ही भीतर
हाहाकार घुट जाता है
पत्थर के होंठ नहीं हिलते
पत्थर की आँख नहीं भींगती
सरल है आँसू बहाना
कठिन है आँसू पी जाना
हो सके तो / मेरे बाद भी
आँसू मत बहाना
कम से कम / इतना करो वादा
और इसे सचमुच निभाना
आँखों से उच्चारित
यह गीत / सामने मेरे
मत गुनगुनाना
इन में मैं कहाँ तैर पाऊँगा
मत फैलाओ यह सैलाब / सामने मेरे
हाथ हिम्मत के थक रहे हैं
जिन्दगी की डोर है
मुस्कान तेरी
आँसुओं की सैर है
मौत मेरी
साझी अनुभूति
काश मैं रो सकता
जैसा एक बार पहले रोया था
जब बस रो ही सकता था
मेरे आँसू बह-बह कर
सोचते हैं बार-बार
मैं उस वक्त नहीं था
तुम्हारे पास
एक रात्रि जागरण करने
तुम्हारे सिरहाने
तुम्हारे मातृत्व से दमकते
चेहरे को / प्यार से निहारने
तुम्हें हल्के से
बाहुपाश में बाँधने
तुम्हारे सिर को
अपनी गोद में सुलाने
या फिर तुम्हारा माथा सहलाने
ताकि बता सकूँ / जता सकूँ
हालॉकि प्रेम है एक बकवास
पर मैं और तुम
ऐसा नहीं करेंगे कभी महसूस
गूँगी खबर
ऐसा हर बार होता है
बादल बरसते हैं
जान पड़ता है
ढलक रहे हैं तुम्हारे आँसू
और मैं भींग रहा हूँ
अन्तर्मन तक
मन की क्यारी की
धुल जाती हैं फूल-पत्तियाँ
पत्तियों की पतली नोंक से
सरक-सरक कर गिरने वाली बूँदें
दर्द बढ़ा देती हैं मन का
एक तड़फ पैदा होती है मन में
गूँगी तड़फ
तुम्हारे दर्द
सब मैं जानता हूँ
बस जानता भर हूँ
चुभते हैं काँटे
मुझे / तुम्हें / उन सभी को
जो इस राह पर हैं
पर रहो मुस्कुरातीं
पौधों में पहले निकलते हैं काँटे
मजबूत होते हैं पहले काँटे
तब कहीं मुस्कुरा पाती है कली
जिन्दगी के काँटों की चुभन से
मत घबराना
फूल खिलते हैं जरूर
फूलों के खिलने की खबर
आने लगी है सुगंध के सहारे
गूँगी खबर
पेड़ों के चुम्बन
पेड़ों के चुम्बन
बाल्कनी तक आये
बिखरती घटा
बूँद-बूँद थम कर
बहती हवा
ओर-छोर जम कर
कोरों का भींगना
तूफान छिपाये
लिपटती लता
सिमटती सहम कर
चाँदनी चटखती
रात पर रहम कर
मिलते दिल
बिना बाँहें फैलाये
नज़रें इनायत
एक नज़र
जरा इधर भी ज़नाब!
कतारों में चलती चींटियाँ
श्रम की लहर हो जैसे
कैसे रहता है मिल-जुल कर
यह भी तो है एक समाज
इनके संघर्षों का
है कोई जवाब
मुद्दतें गुजरीं
जख्म फिर भी है हरा
धुँध छटती ही नहीं
साफ नहीं कोई चेहरा
तिनका-तिनका बह रहा
कब बँधेगा सैलाब
बोझ बहुत ही भारी है
काली-दर्दीली रातों का
झिलमिल-झिलमिल रूप
चाँद और सितारों का
रात बुनती रहती है
जाने कितने ख्वाब
भगते-भगते सदियाँ बीतीं
पहुँचे कहाँ ठौर-ठिकाने
जाने कितने बादल रीते
गा नहीं पाये गीत पुराने
कर दी बंद दर्द की पोथी
हुआ हिसाब-बेहिसाब
रंगोली
मैंने खींची रेखायें
आड़ी / तिरछी
तुमने / भर कर रंग
बना दी रंगोली
मैंने देखीं दिशायें
इधर-उधर
तुमने / बिखरा कर गंध
सुलझाई अनसुलझी पहेली
मैंने सोचा / सब कुछ
देखा आगे-पीछे
तुमने / बदली सी छा कर
की / प्रकृति नई-नवेली
मैंने दी आवाज
बिखरते / बनते सपनों को
तुमने दिया साथ अपेक्षित
बन कर हमजोली
सुंदरतम साक्षात्कार
सुंदर थीं घड़ियाँ
सुंदर थी शाम सलोनी
सपनों की सुंदर थी सैर वह
सुंदर थी अब तलक न सुनी कहानी
कोसों थी दूर नींद
सौतिया डाह के मारे
पलकें तरसीं मिलने को पलकों से
सुंदर था कल फिर आऊँगा कहता सूरज
सुंदर था धीरे-धीरे झाँकता-सकुचाता चाँद
सुंदर थी मद्धम-मद्धम बहती हवा
सुंदर थी एक अद्भुत गंध सुहानी
जैसे श्वेत-रक्तवर्ण कमलों की-
घाटी के खुल गये मायावी द्वार
आत्मा तक को गई सिहरा
संस्कारों को दुलरा
सुंदर था भींगना मन का
पहली बरखा के साथ
सब कुछ था सुंदर, अद्भुत पावन
सृष्टि में एक साथ
इतना सब कुछ सुंदर था
या तुम थीं
इन सब के बीच सुंदरतम
उस पल में
इसीलिये सब कुछ सुंदर था
उस पल में
जुगनुओं के साथ
पेड़ों के बीच
बहती धीमी हवा
और कस जाते हमारे हाथ
बहुत ही मद्धम बरसता पानी
अटकता फूलों,
पत्तियों और डालियों पर
टपकता होंठ पर
कभी-कभार भाग्य सा
वही स्पर्श / वही उष्मा
फिर दिलाता याद
लगता ढूँढ़ने
कोना उजला / मन का
कोई जगह ज्यादा अँधेरी
उभर आती चाँदनी
बादलों की जुल्फ़ें सँवारती
मुझे फिर सुनाई पड़ती एक आवाज़
चिर-परिचित / तुम्हारे स्पर्श सी
हिरणियों से भाग जाते क्षण
क्या फिर लौटेंगे कभी उस जगह
स्मृति ले जाती है हमें जिस जगह
खत्म होती ही नहीं बात
भींगती जाती है सारी धरा
भागती फिरती है हवा
न जाने किसकी तलाश है
खो गया है चैन / साथ मन के
उतर गया है जंगलों में
जुगनुओं के साथ
पेड़ों के बीच
बहती धीमी हवा
और कस जाते हमारे हाथ
गंध
मुझे अच्छी लगती है गंध
प्रकृति के हर पन्ने पर
छिड़की हुई है गंध
कैद हैं छोटे-बड़े ताबूत में
जिन्दा दऩ हैं हम
ताबूत विचार हो
देश हो या देह हो / रेंगते हैं
उड़ भी लेते हैं कभी-कभी
जिन्दगी के हर लम्हे की
खिड़की हुई है गंध
बड़े जतन से
रख देता हूँ फूल सिरहाने
शायद बालों तक जा पहुँचें
चाह कहाँ पूरी होती है
दूर कहाँ दूरी होती है
तुम्हारी देह-गंध के द्वारा
झिड़की हुई है गंध
मुझे अच्छी लगती है गंध
तुम्हारे रोम-रोम पर
ठिठकी हुई है गंध
बिखरे प्रेम पत्र
आँखों पर चढ़ा चश्मा
पास का और दूर का भी
पूरी की पूरी स्मृतियाँ
मन के स्क्रीन पर दौड़ आती हैं
किसी मेगा सीरियल की तरह
तुम्हारी हँसी / उन्मुक्त हँसी
जैसे बहता हुआ जल
बह जाता है ढलानों की ओर
वैसे ही बह जाती है वह हँसी
मन के कछारों में
मेरे लिये पहली हँसी
खिलखिलाहट अभी भी
ध्वनिपटल पर देती है अनुनाद
और मैं सिहर उठता हूँ आज भी
जैसे तब सिहरा था
जब तुमने लिखा था / रेत पर
मेरे लिये पहला प्रेम पत्र
और भी न जाने कितने
रेत पर / पेड़ पर
कभी नहीं रख पाया मैं
पत्र तुम्हारा एक भी
दिल के साथ / अपने पास
क्या होगा
जब स्मृतियाँ भी लगेंगी चुकने
क्या रह जायेगा मेरे पास
बीत रहे हैं दिन / आज की तरह
एक के बाद एक
पिघल रही है मोम
लौ को पता नहीं
कितना समय है शेष
चलो ले आयें चल कर
रेत पर लिखे / पेड़ पर उकेरे
अपने प्रेम पत्र
उलझा धागा है प्यार
सूख गये फूल सभी
थक गईं आँखें
चली गई लौट कर
रूठी गुस्सीली बहार
और कितना इंतज़ार?
निहारता असीम आकाश
टटोलता खिसकती ज़मीन
दिमाग के दरीचों के
ठस्स हो गये द्वार
और कितना इंतज़ार?
स्मृतियों की पोथी के
पलटे पन्नों पर पन्ने
सुधियों के सुर
बार बार खनके
नीरस लग रहा सारा संसार
और कितना इंतज़ार?
छूटती नहीं निगोड़ी आशा
प्यास को आँसुआंे की दिलासा
सुलझाते जिसे जन्मों में
वह उलझा धागा है प्यार
और कितना इंतज़ार?
तुम्हारे लिये
सोचता हूँ
तुम पर भी कुछ लिखूँ
छुआ धरती को
धरती बैठ गई
कलम की नोंक पर
बाल पेन की बाल
बन गई धरती
धरती से ही बात शुरू की
धरती तब तक बैठी रहेगी
मेरी कलम की नोंक पर
जब तक पैर नहीं छोड़ देंगे
धरती
सहलाया नदियों को
नदी समा गई
स्याही बन कर
लगातार पझरने के लिये
नदियों में डूबा, पैठा, उतराया, तैेरा
कविताओं में उतनी ही
आई नदी
जितनी हैं धरती पर
नदियाँ
निहारा आकाश को
आकाश बन गया कागज
धरती और नदियों को
दिखता छूता सा
झूठा मुझ जैसा
और नश्वर भी
आकाश पर ही लिखा
आकाश पर
दिल लगाया चिड़ियों से
उड़ने लगीं वे
मेरी कविता के जंगल में
मुझे एक से लगते पखेऱू
रोज मिलते हैं मुझसे
मेरे आंगन में
आखिर मेहमान होते हैं
कुछ चहक/फुदक कर
हो जाती हैं फुर्र चिड़ियायें
मैं जड़ लेता हूँ उनकी छवियाँ
अपने रचना संसार में
आकाश में दिखते पर
दूर बहुत दूर
झिलमिलाते तारों की तरह
जब भी उगता है आशा का सूरज
आ जाता हूॅं अपने आंगन में
स्वागत करने
आयेगी जरूर एक दिन
मेरी स्वप्निल चिड़िया
सुुलझाया फूलों को
सँवारा कुछ अपने आस-पास को
प्रकृति को
ये सब होते हैं कैद
मेरे शब्दों की जंजीरों में
अनहत, अविनाशी शब्द
रखते हैं छुपाये अपने भीतर
ध्वनि का एक अद्भुत संसार
फूल घुसपैठ कर गये
मेरे बाहर, मेरे अंतस में
मैंने भी गंधों पर
उनसे कर लिया समझौता
घुसने का मिल गया परवाना मुझे
शब्दों के भंडार में
सब से न्याय किया
लिखा सब पर
सोचा
लिखूँ कुछ तुम पर भी
तुमने सचमुच
बहुत आसान किया है
इस कठिन समय में
जीना मेरा
सच बतलाना
जो कुछ लिखा आज तक मैंने
तुम पर ही
नहीं लिखा ?
बाकी बचा हुआ समय
दर्पण सामने था
क़मीज के बटन लगाते समय
दिखा मुझे
एक लाल सा धब्बा
वैसा ही दमक रहा था वह
दमकती है जैसे बिन्दी तुम्हारे भाल की
या सूरज सुबह का
चौंका मैं
लगा सोचने
कब आईं थीं तुम
इतने पास मेरे
कब टाँक दिया था
मेरे क़मीज के आकाश पर
एक लाल तारा
स्मृतियों के ताज़े पन्नों पर
ऐसे दृश्य नहीं झलके
कोशिश की
प्रयत्नों के सूरज से
हटाने की उस लाल तारे को
क़मीज के आकाश से
नहीं हटा सका मैं
उधर नाश्ते की मेज़ पर
ठण्डा हो रहा था
ताबड़तोड़ जल्दी में
तुम्हारी चिन्ता से सिका-पका
मेरा थोड़ा सा खाना
कुछ ठीक ही खाकर छोड़ूँ घोंसला तुम्हारा
यह चिन्ता रहती है तुम्हें सदैव
उधर आसमान पर
तेजी से भाग रहा था सूरज
मेरे काम की शुरूआत
जल्दी नहीं हो पाती
चल सकूँ साथ सूरज के
यह भी चिन्ता रहती है तुम्हें सदैव
तुम सदा की तरह
निगाहों से आवाज़ देतीं
खोज रहीं थीं मुझे
अपने छोटे से घोंसले में
मुझे दर्पण के सामने ठिठका देख
तुम कुछ सकुचाईं
कहा तुमने
जल्दबाजी में बटन टाँकते समय
अँगुली में चुभ गई थी सुई
मेरे खून की एक बूँद ने
खराब कर दी तुम्हारी क़मीज
और तुम्हारा समय भी
कहा मैंने
समय खराब कहाँ हुआ
सज गया मेरा समय
तुम्हारे खून की एक बूँद ने
सँवार दिया
मेरे जीवन का
बाकी बचा हुआ समय भी
दूर पास का तिलस्म
तुम्हारी साड़ी की सरसराहट से
लगता है तुम हो मेरे पास ही
यहीं कहीं
बड़ी खुन्नस लगती है
जब पत्ते करने लगते हैं कानाफूसी
और फूलों की होने लगती हैं
फूलों से बातें
इस मौन शोर में गुम जाती है
तुम्हारी साड़ी की सरसराहट
लगता है तुम नहीं हो पास मेरे
और शायद
कहीं नहीं
थकान की व्यस्ततायें
कहा तुमने
कितने थके-थके से दिखते हो
देखी हैं आँखें अपनी
थकान का स्थायी पता
मालूम होती हैं
कहा मैंने
भला कौन देख सका है
अपनी आँखें
अपनी आँखें देख सकने वालीं
अंतस् की आँखें
मिलती हैं सदियों में
वो भी एकाध को
मुझे नहीं मिलीं / ऐसी आँखें
तुम झाँक सकती हो
जानता हूँ मैं
जरा झाँकों
सूरज की आँखों में
धरती की आँखों में
वहाँ भी
पसर कर बैठी होगी थकान
वो भी थक कर
न धरती थकती है
और न सूरज ही
मुझे भी कहाँ मोहलत है
थकने की
मुझे भी कहाँ फुरसत है
रुकने की
बंद करो मेरी आँखों में झाँकना
दरअसल थक रहीं हो तुम
मेरा भागना / मेरा दौड़ना
मेरी व्यस्ततायें देखकर
दर्पण पर बिन्दी
छूटी नहीं आदत तुम्हारी
हमारी आलमारी के दर्पण पर
बिन्दी चिपकाने की
बिन्दी भी इतनी ठीक
नाप-तौल कर
छोड़ जाती हो / दर्पण पर
गड़ती है मेरे सीने पर
जब देखता हूँ मैं स्वयं को
बिन्दी से सजे / इतराते दर्पण में
गड़ती है वह ठीक उसी जगह
जहाँ सचमुच चिपक जाती है
बिन्दी तुम्हारी सीने पर मेरे
जब होती हो तुम
पास से पास / मेरे
कोई धमाका नहीं होता
गोली सी लगती है
बिन्दी तुम्हारी
नाप-तौल कर रखी गई
हमारी आलमारी के दर्पण पर
पास न होने पर / तेरे
एक और रूप
बहुत अच्छा लगा
देखकर तुम्हारा घरेलू रूप
घर साफ करने की व्यग्रता
बहुत अच्छा लगा
कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर थिरकती अँॅगुलियों ने
लगाई झाडू घर में और परसीं रोटियाँ
नई चादर डालना बिस्तर पर
मिटाना एक-एक कर सारी सलवटें
न जाने कितनी सलवटें पड़ गईं दिल में
और उमड़ा ढेर सा प्यार
अखरने लगा पुनर्जन्म का इंतजार
लगता है जैसे अच्छा आसमान
लगता है अच्छा जैसे तालाब में खिला कमल
लगता है अच्छा जैसे बड़े सबेरे-
किसी सरन्ध्र से किरन का कमरे में उतर जाना
उससे भी अच्छा लगता है
बात-बात में तुम्हारा अधिकार जताना
मन ही मन में
मन से कहना / सच कहना
जो लगा मुझे अच्छा
क्या सब वही तुम्हें
नहीं लगता अच्छा / बिल्कुल सच्चा
कही-अनकही
सुनना चाहता हूँ
इसीलिये नहीं बोलता
ज्यादा कुछ
इस तरह सुन पाता हूँ
सब कुछ
जो कुछ गया कहा
और वह कुछ भी
जो कुछ गया नहीं कहा
जब कही-अनकही
अनसुनी-सुनी कुछ बातें
लगती हैं चुभने
मन में
जैसे फँस गई हो
कोई फाँस तन में
तब जागते हैं
सोये हुये बुद्ध
तलाशने / अपना खोया हुआ
अधूरा सा अस्तित्व
भटकते हैं मेरे अंदर अवस्थित
सुप्त राम / ईसा / महावीर
पतझर में सहेजता हूँ
निर्वासन का दंश झेलते पत्तों को
ढूँढ़ता हूँ उनमें
अपने होने / न होने के प्रतिबिम्ब
जो कहाँ मिलते हैं
और कहीं भासते भी नहीं
कि हैं या हैं नहीं भी
हवा के झकोरों में
अलबत्ता दिख जाता है
बवण्डर सा उठा-फैला
क्षणजीवी गुरूर
सुना जाता है कुछ
बता जाता है कुछ चुपके से
समय रुकता नहीं कहीं भी
किसी के लिये कभी भी
गुनगुनाने लगती हैं कोरस में
बारिश की हर एक बूँद
तृृषित दिल-दिमाग की तृष्णा अमरजीवी
लगता फिर कभी-कभी
यक-बऱ्यक / चुपके से
उगा है कुछ दिमाग की घाटियों में
सरिता में आपाद-मस्तक डूबा
सूरज की तरह
दिल के सरोवर में खिला है सब कुछ
कविता में श्यामली कल्पना की गर्भनाल से जुड़ा
सरोज की तरह
बिदा-गीत
जब तुम्हारी याद दिल से जायेगी
तब समझ लूँगा मैं, अब तुम दूर हो
मन पर हर बिम्ब अभी यों अंकित है
ज्यों जल में हो वृक्षों की परछाई
मौसम सुगंध का आया है लेकिन
अपनों के दु:ख में लगती ज्यादा गहराई
कैसे यकीन करूँ मैं, अब तुम दूर हो।
डाली-डाली दहके हैं पलाश
कोई फागुन गीत नहीं गाता
कंठ अवरूद्ध है कोयल का
वंशी के स्वर को राग नहीं भाता
कैसे मान लूँ मैं, अब तुम दूर हो।
नई राह में नये फूल खिलते हैं
नई राह में नये शूल चुभते हैं
मन की हदों को पार कर
जग बाधाओं से हिम्मत हार कर
कह दोगी कि, अब थक कर चूर हो
तब समझ लूँगा मैं, अब तुम दूर हो।
याद
पूछा मुझसे
याद तो आते हो बहुत
याद करते हो कभी
कहा मैंने
पहले भूलूँ तो
फिर कर लूँगा तुम्हें याद भी
वैसे कभी
नहीं भूलूँगा मैं / तुम्हें याद रखना
जीवन वाटिका
तमन्ना की चाहत
होती है बड़ी भारी
फिर चाहे वह
एक फूल की ही तमन्ना क्यों न हो
कभी तो नहीं कहा मैंने
मैं तुमसे प्यार करता हूँ
याद है एक बार तुमने कहा था हौले से
कभी नहीं कहा मैंने लज़ 'प्यार`
और मैंने कहा था
मेरे प्यार को समझा जाये
सुना नहीं
तुमने कहा था फिर
अकलमंद को भी, कम से कम
करना होता है एक तो इशारा
एक फूल वाला गुलदान है
मेरे रसोईघर में
एक फूल लगा देना
मैं सुन और समझ लूँगी
तुम्हें मुझसे प्यार है
मैंने तत्काल भर दी थी हामी
तब पता नहीं था
एक फूल की तमन्ना की चाहत
बदल जायगी एक बगीचे की दरक़ार में
वैसे यह और भी अच्छा लगता है
कभी कभार, सकारण-अकारण
मैं नहीं बदल पाता फूल
उस गुलदान का
तुम नहीं भूलतीं भूले से भी
बदल देना फूल हमारे गुलदान का
सच बताऊँ
जब भी लगाता हूँ एक फूल
उस गुलदान में
वही सुकून मिलता है
मानों गूँथ रहा हूँ
एक फूल
तुम्हारे बालों में
वैसे बालों में तुम्हारे
न कभी फूल लगे
और न कभी मैंने लगाये
अब तो चाँदनी उतरने लगी है
हमारे बालों में
और बगीचे पर भी
अब पंख
सिकोड़ने लगे हैं हम
उड़ने के पहले
सोचने लगे हैं हम
मैं ही अब
बाहर कहाँ निकल पाता हूँ
चाँदनी में धुले बगीचे से
तुम्हारे लिये
एक फूल माँगने
सुबह से शाम
भोर में, सन्ध्या को
जब मिलते और बिछुड़ते हैं
रात और दिन
फूल और ओस
हर्ष और विषाद
पृथ्वी और सूरज
भींग जाता हूँ मैं
हमारे क्षणिक मिलन और बिछुड़न की
स्मृृतियों की स्मृृति से
हर सुबह, हर शाम
अप्राप्य पत्र
पलट रहा था पत्र तुम्हारे
जो तुमने कभी लिखे ही नहीं
फिर भी पढ़े गये द्वारा मेरे
आज की तरह / कई बार
लगभग रोजाना
थोड़े से शब्दों के ये
लम्बे-लम्बे पत्र
इतना बताते हैं अवश्य
कि पूरी ही नहीं होती बात
तुम्हारी-मेरी
और क्यों,
पढ़ता रहता हूँ पत्र तुम्हारे
इतनी-कितनी बार
खुशबू जम कर बैठी है इनमें
अपना पूरा कुनबा लेकर
साथ साँस सी फिरती है वह
मन की ज़ेबों से झाँकती
कुछ अनिश्चित-निश्चित समयों पर
और क्यों,
घूमती रहती हैं कल्पनायें
इस द्वार - उस द्वार
अपना घर
मैं तुम्हारे लिये बनाना चाहता था
एक अच्छा घर
बहुत अच्छा घर
हुईं कई बैठकें
दिल और दिमाग की
कुछ ज़ुनून भी ता़री था
कुछ दुनियावी ज़रूरातों का
तक़ाजा भी था
प्यार मौत की गोद में है
ताजमहल में
वहाँ विछोह की व्यथा है
यहाँ हर्ष है साथ का
चाहा, बिखरी हुई हो ज़िन्दगी
अपने घर में
हो बोनसाई सी ही सरीखी
पर हो पूरी की पूरी क़ायनात
अपने घर में
घोंसलों की बुनावट को रखा ध्यान में
वे घर की परम्परा के
स्तम्भ हैं / प्रकाश के
जरूरतों को सहेजा, रूमान को समेटा
बना पाया एक घर, ईंट-गारे का
भावनाओं से जुड़ा, सपनों से मढ़ा
अब की ज़िन्दगी में
कृृपाँक से ही सही
पास कर देना
ताकि जा सकूँ अगली कक्षा में
बना सकूँ और बेहतर घर
तुम्हारे लिये, अपना घर
मेरा रंग
रंग उछाले तुमने / नीले-पीले-लाल
रंगों की दुनिया के
खोले सारे दरवाजे
खेले मुझसे लुका-छिपी के खेल
पूछा मुझसे,
इन रंगों में पहचानों मेरा रंग
तुम्हें मानूँगी!
तुम तो दिल में हो मेरे
दिल मेरा काला हो
ऐसा मुझे नहीं लगा, पता
और लाल हो खूब खरा
बची कहाँ साँसों में ऐसी तेजी
खूब सफ़र कर थक गई हैं
सुस्ताने को,
साँसें मेरी तरस गई हैं
सूरज आता-जाता लाल
चला जाता छोड़कर पीछे काला
सारे रंग / इसी यात्रा तक जीते हैं
तपकर लोहा होता लाल
और फिर पीला-काला
लोहे को क्या बसंत
लोहे को क्या रंग-तरंग
पसीने की भट््ठी में / पिघलने वाला
रंगों की दुनिया का
नहीं मैं सैलानी
रंगों की मुझे ज्यादा क्या पहचान
रंगों से मैं तो अनजान
पसीने का नहीं होता रंग
रंग का नहीं होना ही
है मेरा रंग
और अलग क्या
मेरा रंग - तेरा रंग
मेरे रंगहीन रंगों में रंगी है तू
तेरे सतरंगों में और रंगा मैं
कहाँ अलग हैं हम-तुम
जो मैं खोजूँ
तेरा रंग / किसी भी होली में
अस्पर्श स्पर्श
अधिक से अधिक
और कम से कम
पास होता हूँ मैं / तुम्हारे
जैसे एक अस्पर्श सा स्पर्श
पास होने का अस्पर्श
साथ होने का स्पर्श
ओह!
इसीलिये उठती हैं लहरें
छूने चन्द्रमा को
डोलती है हवा
गंध सहेजने को
तैरते हैं पत्ते
टपकती हैं बूँदें
उगती है ओस
साहचर्य टटोलने को
सब मात्र छाया हैं
तुम्हारे / पास ही होने के अस्पर्श की
छाया भर दूरी पर ही सही
साथ होने के स्पर्श की
मेरी-तुम्हारी नींद
याद है
एक बार
शायद था पहली बार
अनेकों बारों में
हाँ, पहली बार ही
आकर पास से पास
जब हम हुये थे दूर-से-दूर
पहली बार
कुछ था कि याद आता है
दिखता है धुँधला सा
पूरा नहीं हुआ था वादा तुम्हारा
उस पहले दिन
एक दो घड़ी / शाम की
कुछ बातें याद करने का वादा
साथ होने का
ध्वनि की तरंगों पर सवार
प्रेेम के गगन में
साथ-साथ तारे गिनने का
योजनों दूर होते हुए भी
एक दूसरे को हल्के से छूने का
कुछ सुनने-सुनाने का पहला वादा
पहले विछोह से जूझने का पहला करारनामा
आज तक याद है
तुम्हारी पहली वादाफ़रामोशी
बहुत थक गई थीं तुम / उस शाम
बताया था फिर कभी
बात-बात में तुमने ही /बिना पूछे
मैंने कहा कुछ नहीं / उस समय
रहा न गया
कुछ ख्याल करो / कहा था मैंने
देर रात में
सपने मत देखा करो / शुभरात्रि!
घंटियों सी हँसी थी तुम
पूछा / भला तुम्हें कैसे मालूम
मुझे आते हैं सपने
मैंने बदली थी करवट और कहा था
मुझे ही तो जाना पड़ता है
सपनों में तुम्हारे
अपने सपनों में तुम्हारा साथ छोड़
ज़िन्दगी में क्या कम भटकाव हैं
जो भटकता फिरूँ सपनों में
मेरे सपनों में / तुम्हारे सपनों में
संसार के साझे सपनों में
वैसे यह महसूसना / दिली सुकून है मेरे लिये
हमारे साथ के पहले कदम से
मेरे जीवन की आखिरी सॉँस तक
कि सो चुकी हो तुम
एक पूरी भरपूर नींद में
न लगे जब तक कुछ ऐसा
कैसे सो पाउँगा मैं
नींद चैन की / कभी भी
इसीलिये कहता हूँ
सपने मत देखा करो
मुझे जाना पड़ता है
सपनों में तुम्हारे
सपने मत देखा करो / शुभरात्रि!
सुन रही हो ना!?
घोसले से बाहर उड़ते पखेरू के लिये
खुला होता है
अनंत, असीम आकाश
हमारी आकाशगंगा को समेटता गवाक्ष
तुम कहाँ विदा दोगी?
सुन रही हो ना!?
अपने बीजों के साथ
कहाँ उड़ पाता है वृक्ष
जड़ों से उखड़ना
अमर्यादित है और प्रकृति-विरूद्ध भी
वृक्ष पर कभी नहीं अंकुराता बीज
बीज में छिपा होता है वृक्ष
जुड़े रहना होता है धरती से
करना होता है स्वीकार / धर्म धरणी का
सुन रही हो ना!?
अँकुराता है बीज
नई कोख में / नई गोद में
सबसे कट जाना होता है
स्वयं एक वृक्ष बनने
इस स्वाभाविक स्वायत्त सफ़र में
नई राह पर / नई डगर में
तुम कहाँ / किस ठौर पर ठिठकोगी
कब तक और कहाँ तक करोगी
छाया आँचल की
कब छोड़ोगी अँगुली बचपन की
सुन रही हो ना!?
वाष्पित हो अश्रु ही तो बरसते हैं
पहुँचते हैं और बीज तक
एक बार अँकुराया था तुमने दूध से
अब अँकुराती हो टपका कर बूँदें
उस रंगहीन दूध की
माता के मन के स्तनों से जो
होता है नि:सृत
उसी तपिश से / उसी नमी से
जुड़कर धरती से बनो समानधर्मा
सुन रही हो ना!?
सही है, कई बार अनुभूत की है तुमने
माँ होने की पीड़ा
इन लहरों ने बारबार टक्कर दी है
मेरी छाती पर
जिसमें छिपा है एक दिल
हजारों स्पन्दनों को सँवारता
और हर हाल में वह है
धड़कने में व्यस्त
सुन रही हो ना!?
ममता के धागों के छोर नहीं होते
हम तो हैं इसके रेशे-रेशे
एक दूसरे से लिपटे-लिपटे
किसे पता, कितने लम्बे / कितने छोटे
हम कहाँ तय करते
क्या हो भूमिका अपनी
नहीं होता है सरल पीठ फेरना
दीपक से हटा पाना पल्लू
सचमुच यह सब है
शिव की तरह गरल पीना
जीवन के विष-अमृत
हमने साथ-साथ, मिल-बाँट पिये
सुन रही हो ना!?
अपनी अँजुरियों से अपने प्राण
अपने सपने
मर्मान्तक होता है विलग करना
अपनों से अपने
इसी शौर्य की कामना है तुमसे
बस शेष यही चाहना है तुमसे
यही तुम्हारी स्वाभाविकता है
माँ तो होती ही है / विलक्षणकर्मा
सुन रही हो ना!?
मैं तुम्हे घेरे रहता हूँ हवा सा
जीवन मेरा / तेरा
अवलम्बित है तुझ पर / मुझ पर
साध साथ की
साँस चार ही
यही जीवनगत्या प्रेम है
हवा सा दिखता नहीं है
तुझ सा / हिलता नहीं है
भागता रहता हूँ मैं आदि-अन्तत:
तुम्हे रहने घेरे अपने बाहुपाश में
सुन रही हो ना!?
भटकता हूँ आकाशों-आकाशों में
जंगलों में तैरता हूँ
सागरों में डूबता हूँ
चोटियों पर सूखता हूँ
तुम्हारे लिये जरा से सुख की तलाश में
सुन रही हो ना!?
तुम्हारी मातृत्वता के अमृत से
अँकुराना चाहता हूँ सन्देश-बीज
ताकि बिखरा सकूँ शब्द-बीज
पहुँचा सकूँ उन सभी तक
जिनके बंद हैं कान, पर आँखें खुलीं
सहधर्मिणी! टेरता रहता हूँ मैं तुम्हें
कितनी हो गई बारिश
तुम कुछ नहीं बोलीं
सुन रही हो ना!?
उपलब्धि
मेरे जीवन-पंक में
`सरोज` हो तुम
पास होने पर पास नहीं
दूर होने पर / कभी नहीं दूर
स्मृतियों के आल्बम में
सजे चित्र तुम्हारे
तुमसे ज्यादा / बतियाते हैं मुझसे
नदी सी निरन्तर हो तुम साथ मेरे
आस में इसी जीवन की
अबूझ प्यास हो तुम
रातरानी की गंध सी मादक
हरी-भरी / मनी-प्लांट सी
सजीं नहीं तुम
मेरे जीवन-कक्ष में
महक हो तुम फूलों की
देवों के आगे जलती
धुम्र-दंडिकाओं की
स्थायी सुवास हो तुम
साँस की फाँस
अपने नाखूनों से
अपने दाँतों से
जब तुम निकालती हो
मेरी हथेली की फाँस
ईर्ष्या से
इस भागती दुनिया की
रुक जाती है साँस
जब अलग होते हैं
तुम्हारे होंठ
मेरी हथेली से निकाल कर फाँस
तब दर्द
वहाँ कुछ घट जाता है
पर जाता नहीं कहीं
कहीं भीतर ही भीतर पैठ जाता है
तुम्हारी भी सामर्थ्य के बाहर
और अधिक मीठी चुभन लिये
बना रहता है तब तक
जब तक
न रुक जाये मेरी साँस
जब तुम निकालती हो
मेरी हथेली की फाँस
प्रेम का घरौंदा
जितनी अनुरक्ति है तुम्हें
कविता से
उतनी शक्ति कहाँ मुझमें
कि जोड़ता रहूँ दुनिया के लिये
कुछ न कुछ नया-नया
रचता रहूॅं निरन्तर
कुछ न कुछ नया-नया
शब्दों को चुन-चुन कर
विचारों को बुन-बुन कर
भावों को गूँथ-गूँथ कर
बनाता रहूँ
कभी न पूरा होने वाला
प्रेम का मकान
जितनी अभिव्यक्त होती है
तुमसे कविता मेरी
जितनी मुखरित होती हो तुम
साथ कविता के
मैं उतना ही ज्यादा
लगता हूँ चिढ़ने
अपनी रचना से / अपनी कविता से
ओ सदाबहार गंध
कमलो की घाटियों से
तैर कर आतीं
मेरी कविता के प्रत्युत्तर में
इतनी मेरी सामर्थ्य कहाँ
बुन सकूँ जाल कोई शब्दों का
तुम्हारी गंध को सिर्फ अपने लिये
बंद कर सकूँ / किसी इत्रदान में
नहीं समझ सका प्रेम को
आज तक
कहाँ समझ सका आज तक
कविता के आकाश को
दूर से देखती हो तुम
आकाश में एक से
नजर आते हैं तारे
तुम्हारे बालों में गूँथने
लाया हुआ तारा
रोज-ब-रोज लगता है तुम्हें
वही तारा / दुहराया हुआ
तुम्हें दिखती है स्नेह की जलधार
झर-झर बहती कविता की निर्झरणी
पत्थर का दिल है मेरा
चलो माना
देखो जरा
झाँक कर दिल में
जितने आकाश में तारे
उतनी ही हैं दिल में दरारें
आँखों के रास्ते
जरा उतरो दिल में
जीवन का अमृत है वहीं
अमर करता रहता है जो
तारों को, कविता को
और इस तरह अन्तत: जनमता है
प्यार, प्यार और सिर्फ प्यार
मिलन
कितनी विचित्र बात है
मिलते हैं हमारे नाम
अपनी अर्थवत्ता में
मिली है हमें एक सी दृष्टि
देखने की स्रष्टि को
मिलती है हमारी समझ
मिलती हैं हमारी रूचियाँ
मिलते हैं हमारे विचार
मिलती है हमारी चाहत
मेरी कविता पर क्यों आसक्त हो तुम
मेरी समझ कहाँ इतनी
बस इतना पता है
सब कुछ मिलता है हमारा
पर हम नहीं मिले कभी
श्रृंगार
मालूम है मुझे
वेणी से अच्छी लगती हैं तुम्हें
अँगुलियाँ मेरी
बालों में तुम्हारे
मेरे गुलाबों से
गुलाबी हो जाता चेहरा तुम्हारा
और आँखें
मेरे स्पर्श से
करती हो तुम उबटन
मेरे किये श्रृंगार
होते हैं तुम्हारे अंत:भूषण
जिन्हें देख पाता हूँ मैं
सिर्फ मैं
तुम्हारे उलाहनों के साथ
खोजता हूँ तुम्हें / सिर्फ तुम्हें
तुम्हारी ही देह में
मालूम है मुझे
खोई हुई हो तुम मुझमें
सिर्फ मुझमें
और मैं तलाशता रहता हूंॅ
तुम्हें भुवन भर
देखने नयनों में तुम्हारे
अपना भुवन
मैं तुम्हारा श्रृंगार हूँ
या अपने श्रृंगार की
इति की है तुमने मुझमें
तुम मेरा जीवन हो
तुम हो अर्थ मेरे होने का
जानता हूँ मैं / और निश्चित
सिर्फ तुम ही
तुम्हारी ध्वनि देती है
मुझे आँखें
अपने कानों से देखता हूंॅ
मैं तुम्हें
कल्पना आकाश कुसुम होती है
और मैं चाहता हूंॅ सिर्फ / निहारना
हो सके तो
अपनी अँगुलियों से
तुम्हारे बालों को सँवारना
और वह भी / अनवरत
हाथों में हाथ
प्यार तो है / चाँद
जल / नदी का
या तो रहता है घटता
या फिर बढ़ता रहता है
प्यार तो है / बसंत जीवन का
गान सूरज का
डोलता मन / तरंगों की तरह
या तो रहता है आसपास
या फिर कहीं नहीं रहता
प्यार तो है / बेसुध होने की कथा
अँधेरा इतना घना
हाहाकार मावस का
उजाला इतना घटाटोप
हाथ को न सूझे हाथ
मन ही मन / फिर भी
हाथों में हाथ बना रहता है
मौन सम्वाद
तुमने कहा मुझसे
मत रोको मुझे / मत टोको मुझे
करने दो बस अपने मन की
कह-कह कर की मनमानी
मेरी एक न मानी
मेरे हिस्से आया मौन
कल तक पट्टी थी आँखों पर मेरी
अब मुँह पर ताला है
मन ही मन कहा मौन से
ऐसी कोई बात नहीं है
मेरी भी कुछ बातें सुन लो
तुमको टाल नहीं पाता
तुम्हारा कहना जरा सा
भारी पड़ता है
उससे तो कम लगती है लू
मई के महीने में
या बरसती बारिश
सीने पर दिसम्बर के
मत कहो / कम से कम
तुम तो मत ही कहो
अँगुली उठाती हो
हवा की इस थिरकन से
मैं समाने लगता हूँ / धरा की कोख में
गिर जाता हूँ / उस नज़र से
खुद को देखता हूँ जिस नज़र से
प्रेम ने, मैंने नहीं
बाँधी थी पट्टी कभी आँखों पर
हर हलचल की शर्त होती है
चाहे कितनी भी ठोस हो ज़िन्दगी
विचार / अनुभूतियाँ / प्रेम / यथार्थ
सबमें पर्त होती है
खुशी से दिन बीता
बीती शाम कहकहों में
सुबह दिखते ओस कहते
रोना भी है ज़िन्दगी में
दृष्टि सचमुच सबल है
ध्वनि को कष्ट मत दो
दो मुझे मौन दो
ज्ा़िन्दगी में कौंध दो
न हो ध्वनि तदुपरान्त
मुझे मौन से / प्रेम दो
मौन दो / मौन से
करें शुरु एक जीवन नया
अंतहीन विस्तार लिये
बिम्ब
करते रहते हैं
चुम्बकित
धमनियों में नाचते लौह-कणों को
स्मृतियों की बहक जातीं
धुनें
विलोकतिं जब
बिम्ब के विस्तार को अनंत से
एक वृत्त पूरा हुआ
जीवन-कर्म का
सामना है एक और लहर का
कर्ज है साँसों का
चलो, करें शुरु
एक जीवन नया
जैसे अभी तक कुछ हुआ ही नहीं
प्रारम्भ को होता है पता
अंत का
अनंत तक के अंत का
पता नहीं है / तो बस
पता नहीं है अंत
बिम्ब के अंतहीन विस्तार के अंत का
गुनगुनाहट
अब भी रखा है
पंख मेरे पास
जो रखा था तुमने कभी
उस किताब में
मेरे लिये
बिछुड़ गया है
पंख अपने ठौर से
फिर भी / मन को उड़ा ले जाता है
खोल देता है पृष्ठ
सुनिश्चित / उस किताब के
गुनगुनाती हो तुम जिसमें
मेरे लिये
पता नहीं / कहाँ थमा है मौसम वह
जो झंकृत कर दे तार
वाणी के
सुना सकूँ / वो कवितायें सभी
जो लिख रखीं हैं मैंने
तेरे लिये
परदेस साईबेरिया तक के पंछी
मिला करते हैं / याद से
फ़ासला तब जाता है बढ़ता
जब बढ़ते नहीं कदम / विश्वास के
मरीचिका का दौर है
बची ही नहीं अब / ज़मीन प्यार की
हमारे लिये
खिलने लगते हैं प्रश्न
कौन से चुनुं फूल
गूँथने / बालों में तेरे
नहीं बता पाता वातायन को
करनी है निमंत्रित
कौन सी गंध
इन प्रश्नों के झकझोरों से
अकुलाहट में हैं प्राण मेरे
बाहर भी बिजलियाँ
भीतर भी बिजलियाँ
घर ही नहीं
दिल भी बना है घास-फूँस का
करता है / तैरता / दरिया में आग के
रिमझिम का इंतजार
मधुर-मधुर यादें / रहती हैं घेरे
प्रश्न खिलते लगते हैं फूल से
कौन से फूल चुनुं
गूँथने / बालों में तेरे
मुझे निहार लो तुम
निमीलित / जैसे
पोखर पर पड़तीं रश्मियाँ
खेलतीं खिल-खिल
चौंधियाने वाले पल
आँखों को मन की
दिखलातीं अँधेरा
उनकी राह सींचते बादल
किया है जिन्होंने स्वागत समय का
निर्लिप्त / जैसे
सूरज और चाँद
बसंत और ठूँठ
मिल जाये मन को स्पर्श मन का
अनुराग की सुगन्ध लिये
जल प्रीति का
क्या हुआ / फ़ासिल हैं ज़माने के
खिल जायेंगे
नि:संकोचिका / जैसे
बयार हो
नगाड़े बजाती आतीं
या फुसफुसाहटें
कभी थम जाती हो / ऐसे भी आती हो
मेरी आँखों पर रखतीं
चुपके से / फोहे सी अँगुलियाँ
बिखर जायेगा अणु-अणु
एक बार फिर / आँखें बंद कर
मुझे निहार लो तुम
बात एक रात की
उस रात / विमुग्धा की बाँहें
और मेरी बाँहें
अनुभूतियाँ दोबारा
मन जीना चाहे
बरखा भी रुकती सी आती
बूँदों पर कनखी / चंदा की
कुछ उजियारा / कुछ अँधियारा
कुछ बदली छाई तेरे बालों की
उस रात / विगलित दर्प का प्रकाश
और मेरी राहें
पहरों मौन / पहरों बातें
दुनिया से बाहर / जीवितों में / न समाते
पार / समय की सीमा के पार
मिलन के स्थिर कालखण्ड में
क्षण भर की बिछुड़न / मन / अकुलाते
उस रात / कल्प वृक्ष था बाँहों में
और मेरी चाहें
खब़र / हवा तक को न थी
न बही थी बात / बहारों में
न तो जाना / झिलमिल-झिलमिल तारों ने
हम हो गये थे अकेले / हजारों में
न रखी कोई जात / गुमनाम हो गये
उस रात / नदी थ तुम
और मेरी बाँहें
इंतजार की उम्र
तुमसे तो अच्छा है तुम्हारा ख्याल
आता है तो जाता नहीं जल्दी
ज़िन्दगी कट रही / कुछ बुरी नहीं विशेष
रौशनी है हर तरफ / कुछ दिखता नहीं विशेष
खुली हैं ज़ेहन की खिड़कियाँ सारी
फिर भी घुटता सा लगता है दम
दर्द दिल में बस चुका मेहमान है
कुछ शिकवा नहीं विशेष
वायदे सुनते नहीं कुछ
इसीलिये आवाज़ नहीं दी
वक्त के पलटते जा रहे पन्ने दर पन्ने
सुबह और शाम आते पास मेरे / लेकर खाली हाथ
फिर भी चमकती हैं आँखें / याद कर आँखें तुम्हारी
हर आहट पर कान चौकन्ने
कभी नहीं मुरझाता आशा का फूल
इंतज़ार की उम्र होती बहुत लम्बी
इसीलिये इसे कभी दुआ नहीं दी
प्रेम का मान
माँगता नहीं मैं
किसी से
ईश्वर तक से
कुछ भी नहीं मांगा
आज तक
तुमसे कब माँगा
प्यार मैंने
कब माँगा है
साथ हमारा / कुछ और देर तक
चलना साथ / कुछ और दूर तक
मेरी शक्ल हो जाओ
समा जाओ
मेरी पलकों में
तैरो, और ठहर जाओ
आँसुओं की तरह
तुम्हें देखूँ
और न पाऊँ कुछ देख
और न देख पाये
तुम्हें दुनिया
मुस्कुराओ
मेरे ख्यालों में
हो लम्बा सफर
न हों / कोई बातें
देहों से निकल कर
दिल कहीं घूम आयें
कौन दे उत्तर
तुम, और ज़माना
मशगूल हैं सवालों में
करीब आओ
मेरी रूह में
जज्ब़ हो जाओ
देह देती है दगा
अविनाशी है आत्मा
तुम्हें नहीं खोऊ
मेरी शक्ल हो जाओ
वक्त की कल्पना
जरा कल्पना करो
उस वक्त की
जब हवा न चले
न हिले
एक भी पत्ता
जहाँ तक जाती है नज़र
वहाँ तक
घुटने लगती हैं साँसें
सब कुछ लगता है
मानो थम रहा है सब कुछ
क्या प्रलय का
होगा कोई और रूप
जरा कल्पना करो
उस वक्त की
तुम नहीं आतीं नज़र
जहाँ तक जाती है नज़र
वहाँ तक
स्वप्न का जागरण
सपनों में जाना
वस्तुत: जाग जाना है
तेरी आँखों की झील में
तैरता है अक्स मेरा
जलन से ढलक जाती हैं
पलकें तुम्हारी
ढूँढने एक गंध
जन्म-जन्मान्तर की जानी-पहचानी
उतर जाता है मन
अँगुलियों की पोरों के सहारे
तेरी अलकों के घने जंगलों में
कभी खो जाना
वस्तुत: पथ पा जाना है
चाँद को घेरे बादल
इठलाते / बल खाते बादल
जब छा जाते हैं मुझ पर
छूट जाता हूँ समय के पाश से
जब नहीं मिलती
मेरी-तुम्हारी लय
नहीं मिलता
रोमांच का अनुनाद
लेने तुम्हारी खोज-खब़र
करता हूँ सम्वाद आकाश से
अँधेरों की अति
वस्तुत: उजालों को पा जाना है
रुका नहीं कुछ भी जगत का
चौकड़ियाँ भरता सूरज
कहाँ देता है दिखाई
तुम्हारे पल्लू सा खिसकता रहा चाँद
कब कहाँ ठहरी है गंध बौराई
आँगन की धूप
लाँघती बरामदे को
कुछ नहीं रुकता
तुम भी क्यों रुकोगी
आँखों से ओझल हो जाना
वस्तुत: दिल में घर कर जाना है
किसकी तलाश है
भागती है नदी
मौसम / दिन
साल सब भागते हैं
क्या खोजता फिरता है चाँद
चाबुक समय का बरसता है
बेहिचक / बिला नागा
जब विराम पाती हैं बाह्य यात्रायें
प्रारम्भ होती है यात्रा
अंतर्मन की
तलाश / यह जानने की तलाश
किसकी करनी है तलाश
जिसे पा जाना
वस्तुत: खो जाना है
देह की दीवार
मेरे और तुम्हारे बीच
है एक दीवार
हडि्डयों की बनी
दाँतों जड़ी / नाखूनों मढ़ी
गंधाती दीवार
मेरे और तुम्हारे बीच
है एक दीवार
देह की दीवार
दसों दिशाओं / चौदह भुवनों
और असीम
समय की सीमा तक फैली है
अनन्त ऊँचाइयों तक
ऊँची है यह दीवार
अदृश्य होकर भी रोकती है
बाँधती है समय के बंधनों में
संस्कारों की साँकलों में
कहानियों की कन्दराओं में
हम खो नहीं सकते
जंगलों में / पहाड़ों में
कछारों में
तुम्हें नहीं सकते देख
आँखें बंद करके / खोल करके
इतना तो तय है
आते-जाते रहेंगे / सितारों की तरह
बरसते रहेंगे
मानसूनी बौछारों की तरह
देखने
क्षण-क्षण दरकती
यह दीवार
जो है / मेरे-तुम्हारे बीच
एक अमर-नश्वर दीवार
देह की दीवार
साँस मेरी महक रही
है क्या अधिक मीठा
चुम्बन से तुम्हारे
है और क्या अधिक दुर्लभ
बाहों के हार से
सब भूमिकायें निभातीं
मुझे रखने जिन्दा
आईं थीं धरा पर
हव्वा के रूप में
तुमने ही रचा है / संसार सारा
और ये अहसान ऊपर से
माँगा है / मेरा सहारा
है और क्या अधिक रहस्यमय
आवरण से तुम्हारे
जब होता हूँ / पास तुम्हारे
तुम्हारा ही होता हूँ
तुम्हारा ही / पूरा का पूरा
जब जगत में उतर जाता
साथ बस इतना / दिखता
छोर आँचल का तुम्हारा
है और क्या इससे बड़ा सुख
महक रही साँस मेरी / साँस से तुम्हारे
आहट सुबह की
लग रही हो तुम
एक किरण सूरज की
एक अच्छी कविता का सुख
या अच्छा सा कोई गीत पुराना
सुनाये कोई / गुनगुनाये कोई
करो बात कोई
वक्त-बेवक्त मीठी सी
लाल धुँयें में सज जाता है चन्दा
धुँआ चूल्हों का / काजल चन्दा का
नज़र बचाती है नज़र प्यार की
लग रही हो तुम
एक आहट सुबह की
जाने-अनजाने रिसता है संगीत
धड़कन और ख्याल का
भारी है सिक्का / समय के जाल का
जग रही हो तुम
अँधियारे में दीप सी
पत्तियों से छनती धूप
तुम्हारी याद
पत्तियों से छनती धूप है
तुम्हारी बात
ऐसे टकराती तट से जैसे
लहर के बाद लहर
ऐसे रहती साथ मन के जैसे
प्रहर के साथ प्रहर
तुम्हारा साथ
ओस की चमकती बूँद है
सुख भरी हवा मिलती कहाँ अब
प्यास बैठी ढोकर अमरता
बादल बिखरते, कोहरा घनीभूत है
दृष्टि कितनी भी विकल हो
दूरियों की धुँध है
तुम्हारी आहट
सदाओं की अनुगूँज है
तुम्हारा अहसास
जैसे आत्मा का / नहीं मिलता
नहीं मिलता जैसे परमात्मा
न जाने कब फेर ले मुँह
पकड़ने रास्ता कोई खास
तुम्हारी आँख
जीवन का निखरता रूप है
नज़रबंद
तुम सितारा
और मैं ज़र्रा
जन्मजात होती है गूँगी, पीड़ा भी
निर्वासित साँस-साँस, चुभती सी
थक-थक कर खुलती हैं, आकुल आँखें
रुक-रुक कर आशा की हिलती हैं, पीड़ित पाँखें
तुम किनारा
और मैं दर्रा
ज़माने भर को जतलातीं, कुछ दबी बातें
अकेले में न बतियातीं, स्थगित हैं सभी नाते
मेरा पाषाण का दिल है, तुम्हारी फूल सी बातें
कितना द्रवित है दिल मेरा, बताती रोज हैं रातें
तुम शिकारा
और मैं जज़ीरा
हवाओं ने कर दिया, मुझको नज़रबंद
सौ-सौ पहरों में है कैद, तेरी हर एक गंध
स्पर्श सो रहा है अब, भूल सारे अनुबंध
अपनी निराकार ही रही, अनकही सौगंध
तुम लिफाफा
और मैं लापता
चपला
इस समूची स्रष्टि में
तुम चपला सी कौंधतीं
और मैं निहारता एकटक
ठहरते घूमते नयन / निमिष भर
मेरे नयन पर
निमिष बदले सदी में
और मैं क्या माँगता भरसक
साफ-साफ दिखती
एक झिझक
इच्छा बहकाती बहक-बहक
और मैं क्या जाँचता कसक
सूनी हो गई स्रष्टि सारी मेरे लिये
लोप हो गईं
तुम कौंध कर
और मैं ठहरता कब तलक
रोमान की लहर
बहुत जल्दी पहचान लेती हैं
लहर रोमान की
और चहकने लगती हैं चिड़िया
कुछ ज्यादा ही
चाहे चुगती हों बादाम डली खीर के दाने
या पसिये में टूँगती हों
बचे कुछ चाँवल के दाने
कुछ ज्यादा ही बुद्धिमान हो गये हैं हम
या हो रहा है ठंडा जज्ब़ा हमारा
जीवन की कसौटी है गर्म रहना
हम परम्पराओं की राख में दबे अँगारे
एक छद्म रक्षा-कवच ओढ़े हुये हैं हम
हमारी तपिश अब चमड़ी के नीचे ही
कैद रहती है
एक शैली / एक ढर्रा / और दौड़ते हम
चूक रहे हैं देखना
कब आई और कब चली गई / बिना किये बातें
लहर रोमान की
सिहरन की आँच
तिरछी-तीखी बौछार से
पहली बरखा की
होती है जैसी सिहरन
प्रकृति के पोरों को / तृणों को
बदल जाती वह सिहरन गंध में
बौराती / तपते पवन को
वैसी ही होती है सिहरन
जब तुम्हारे केश / होकर आज़ाद
देने लगते हैं दस्तकें
छुप कर / मेरी पीठ पर
और गंध बन जाती है विश्वास
आसपास आ गई हो तुम
पास से पास
नहीं, शायद
उससे भी ज्यादा / अनाम सिहरन
बरखा की सिहरन तो
उतरती धूप है
और तुम्हारी
धूप है चढ़ती / इस ठिठुराये समय में
बदल गये मायने
आँच के
छुआ दीप / सेंकी सिगड़ी
उचक्कों सा लकड़ी चुरा कर
समय से आँखें बचाकर
ली खूब / आँच फागुन की
सदैव तुम्हारी दहकन के रहा
करीब से करीब
जो पिघला देती है / उद्विग्नता के पहाड़ों को
आँच तुम्हारी विचित्र
शीतल जल जैसे बुझाती प्यास को
नहीं, शायद
उससे भी ज्यादा / अनाम आँच
मन में सरन्ध्र बना
गंध बन भिद जाती है / बिसराये समय में
अनुभूतियाँ
हर कण ने / लहर ने हर
हर क्षण ने
छुआ है मुझे
अनुभूतियों का अमीर हूँ मैं
दादी-नानी की कहानियों से जानी
सबसे अधिक
कड़कड़ाती ठंड की रात में
समीप हो / एक गोरसी
उदास झुटपुटे में
धुँधियाते
शोर मचाते वीराने में
अनुगूँजे / एक स्मृति-गीत
जब काटता नहीं
भागता है समय / मन को उड़ाते
थिरकते हों पैर समय के
बमुश्किल / एक मीठी नींद
झरने की स्वर-साधना
नृत्य नदी का
लचकन फूलों की
घुँघरू / घंटियों सी हँसी के
गंध-स्वेद / बहुत सी जानी-अनजानी
स्मृतियों में रची-बसी
जीवन में सजी-धजी
है एक अनुभूति
तुम करीब हो
सारी अनुभूतियों का समुच्चय है
यह एक अनुभूति
बहार का इंतज़ार
खोल दो गुफाओं के द्वार
एक बार / फिर एक बार
है विचित्र बात यह
थी विचित्र रात वह
चाँद को निहारते
बेसुध थी रात वह
सुबह का किसे था इंतज़ार
ढँका-मुँदा सब कुछ
सूरज से परदा है
थम गई बातों की नाव
कसक में आ गया ठहराव
नमकीन सी हो जाये तकरार
जाने-अनजाने में
सुनने-सुनाने में
कोई नहीं आता है
कोई नहीं गाता है
धीमी सी हो जाये पुकार
अमराई हो
या सड़क हो सपाट
बरखा हो
या चमकीली धूप
इधर भी आने दो बहार
ओस बिन
फूल का निखरना क्या
राग बिन
गीतों का सजना क्या
क्या हुआ / था खत का इकरार
चेहरा दिल होता है
दिल होता है
चेहरा
कभी झूठ नहीं बोलता
मेरा-तुम्हारा
जो महसूसता है दिल
तुरत चेहरा
करने लगता है बयान
जानो हाथों में
उठा रक्खी हो
शपथपूर्वक गीता
दिल खोया रहता है
ख्यालों में
कभी चुप नहीं होता
मेरा-तुम्हारा
जो अनुभूत करता है दिल
लहर सा
लहरा जाता है
चट्टानी चेहरे पर
स्थायी प्रवास कर चुके
उतार-चढ़ाव
जम जाते हैं झुर्रियाँ बन
दिल रहता है
धड़कता
एक-दूसरे के लिये
मेरा-तुम्हारा
अहसास
मेरे पास दिल है
और धड़कन भी
जाने कहाँ तक भारी है
आसमान
जाने कहाँ तक पोली है
जमीन सारी
जाने कहाँ तक जमी है
बर्फ सारी
जाने कहाँ तक छिप गई है
हरियाली
मेरे साथ तुम हो
और पास भी
जाने क्यों छोड़ गया है
चैन मन को
जाने क्यों जोड़ गई है
याद वो
जाने क्यों मोेड़ पर छोड़ गये
मुझ को
जाने क्यों थोड़ी हैं आशा की
साँसें जो
मेरे लिये जीवन स्वागत है
और अलविदा भी
पर या पैर
कितने ही कठिन हों रास्ते
या हों
जितने हो सकते / सरल उतने
जब पैर ही न हिलें तो
न मंज़िल और न ही संतोष
चरैवेति चरैवेति का
क्या कहें
उसने कहा
क्या पैरों से ही चला जाता है
कहते हैं
मन भी होता है चलायमान
कहा मैंने
मन के पैर नहीं
पर होते हैं
इसीलिये तो खलता है / कभी-कभी
पैरों का न चलना
परों का न हिलना
क्या कहें
कही-सुनी
कहते हैं
स्मृतियों के नहीं होते हैं दुहराव
हमने भी छोड़े हैं
बहुतों की तरह गोकुल
इसीलिये शायद
क्या खो दिये हैं
गाँव
कहते हैं
चलने में नहीं होते हैं ठहराव
हम भी दौड़े हैं
बहुतों की तरह ताउम्र
इसीलिये शायद
क्या खो दिये हैं
पड़ाव
कहते हैं
चोरों के नहीं होते हैं पाँव
हमने भी चुराये हैं
बहुतों के दिल
इसीलिये शायद
क्या खो दिये हैं
पाँव
कुछ और नहीं
इस पृथ्वी में कुछ और नहीं चाहिये मुझे
जन्म मिला / जरा मिली
मर्म मिला / बात मिली
फूल मिला / सजा मिली
दिन मिला / रात मिली
इस यात्रा में कुछ और नहीं चाहिये मुझे
साथ मिला / सीख मिली
गीत मिला / लय मिली
दर्द मिला / रीत मिली
नेह मिला / देह मिली
इस निद्रा में कुछ और नहीं चाहिये मुझे
नाम मिला / धूम मिली
गाम मिला / मिट्टी मिली
तारा मिला / कारा मिली
तम मिला / तुम मिली
इस जीवन में कुछ और नहीं चाहिये मुझे
क्या बतायें
दर्द कंधों का
क्या बतायें
बैसाखियों को सब पता है
अक्सर कह देते हैं लोग
अँधेरे में मत चलो
मैं सुन लेता और लेता मान भी
अँधेरे से प्रकाश की यात्रा में
मैं नहीं शामिल
प्रकाश से प्रकाश की ओर -
चलने की कवायद में हो चुका शामिल
आँखों का आकाश कितना बड़ा है
क्या बतायें
परछाइयों को सब पता है
मैं क्या रुका
लगा जैसे रुक गया हो समय
न हुई अगुवानी चंदा की
न दे सका विदा सूरज को
न सका निहार ताकाझाँकी तारों की
कहाँ तक पहचान है अपनी
क्या बतायें
रुसवाइयों को सब पता है
गर्मियों में भी बाहर बगीचे में
खिले हैं फूल बेहिसाब
इधर आराम से अंदर
बता जाते हैं चाहने वाले
चेहरा तुम्हारा खिला है
पर बिस्तर पर चुभन कितनी
क्या बतायें
तनहाइयों को सब पता है
अनुभूतियों को
शब्द से तस्वीर देता हूँ
कल्पना को
भाव से तक़दीर देता हूँ
आते गये जाते गये
मौसमों का लेखा-जोखा
क्या बतायें
अमराइयों को सब पता है
फर्क कितना होता है कम
जानी और फ़ानी होने में
फर्क कितना होता है कम
साँसों के साथ जीने और मरने में
मैं कितनी दूर बैठा महफ़िलों से
क्या बतायें
शहनाइयों को सब पता है
जीवन की तलाश
कुछ भी तो नहीं है स्वतंत्र
न पेड़, न फूल
नदियॉं, पहाड़, हवा, धरती
सूरज तक नहीं है स्वतंत्र
सब लगते हैं मुझे खिलौने
कोई खेलता रहता है इनसे
कभी लाड़ प्यार में / मनुहार में
कभी खीझ / कभी दुत्कार में
लगता है मुझे
हम भी तो हैं खिलौने
हर किसी के
दुनिया खेल रही है
मुझसे-तुझसे
खंगाल रहा हूँ सारे सागर
छान रहा हूँ सारे रेगिस्तान
खोद रहा हूँ सारे पहाड़
खूँद रहा हूँ सारे जंगल
अधिकारने जीवन में अपना जीवन
दरअसल जरूरी है बहुत
जीवन में इतना जीवन
खेल सकें खिलौने खुद से
मुझसे-तुझसे
बुढ़ाते माँ बाप
कुछ समय बाद
हम झाँक नहीं पाते
बच्चों की दुनिया में
जीवन में किसी के
झाँकना / अच्छी बात नहीं है
पर अपने जीवन में
झाँकने के तो
बहुत से उपदेश हैं
हमारे बच्चे होते हैं
हमारी आत्मा के अंश
हमारे बच्चे ही तो होते हैं
हमारा जीवन
अपने जीवन में झाँक
पाना / बड़ी बात है
बित्ते भर के बच्चे
देखते ही देखते
सर से ऊपर हो जाते हैं
रोशनदान हो जाती हैं
खिड़क़ियाँ
बौने होते जाते हैं
खिड़कियों के पल्ले पकड़े खड़े
बुढ़ाते माँ बाप
प्रथमांतिम इच्छा
जब तक हिलेंगे होंठ
मैं तुमको
चूम तो सकूँगा ही
सागर में समा जाये सूरज
तब तक देखूँगा बाट
तुम छिटकती रहो / दूर ही दूर
खस की गंध सी महकोगी
जब तक अलविदा कहे
आखिरी साँस
मैं तुमको
सूँघ तो सकूँगा ही
जीवन आर्द्र है
है धूप भी तीखी
तुम देखती रहो / नूर ही नूर
सन्ध्या-सुबह सी साथ होगी
जब पगडंडियों पर थम जायें
पैर थक कर
उस आखिरी कदम पर
मैं तुमको
थाम तो सकूँगा ही
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