Monday, February 25, 2008

जीवन की तलाश 79

कुछ भी तो नहीं है स्वतंत्र

न पेड़, न फूल

नदियॉं, पहाड़, हवा, धरती

सूरज तक नहीं है स्वतंत्र


सब लगते हैं मुझे खिलौने

कोई खेलता रहता है इनसे

कभी लाड़ प्यार में / मनुहार में

कभी खीझ / कभी दुत्कार में


लगता है मुझे

हम भी तो हैं खिलौने

हर किसी के

दुनिया खेल रही है

मुझसे-तुझसे


खंगाल रहा हूँ सारे सागर

छान रहा हूँ सारे रेगिस्तान

खोद रहा हूँ सारे पहाड़

खूँद रहा हूँ सारे जंगल

अधिकारने जीवन में अपना जीवन


दरअसल जरूरी है बहुत

जीवन में इतना जीवन

खेल सकें खिलौने खुद से

मुझसे-तुझसे

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