Monday, February 25, 2008

क्या बतायें 78

दर्द कंधों का

क्या बतायें

बैसाखियों को सब पता है


अक्सर कह देते हैं लोग

अँधेरे में मत चलो

मैं सुन लेता और लेता मान भी

अँधेरे से प्रकाश की यात्रा में

मैं नहीं शामिल

प्रकाश से प्रकाश की ओर -

चलने की कवायद में हो चुका शामिल

आँखों का आकाश कितना बड़ा है

क्या बतायें

परछाइयों को सब पता है


मैं क्या रुका

लगा जैसे रुक गया हो समय

न हुई अगुवानी चंदा की

न दे सका विदा सूरज को

न सका निहार ताकाझाँकी तारों की

कहाँ तक पहचान है अपनी

क्या बतायें

रुसवाइयों को सब पता है


गर्मियों में भी बाहर बगीचे में

खिले हैं फूल बेहिसाब

इधर आराम से अंदर

बता जाते हैं चाहने वाले

चेहरा तुम्हारा खिला है

पर बिस्तर पर चुभन कितनी

क्या बतायें

तनहाइयों को सब पता है


अनुभूतियों को

शब्द से तस्वीर देता हूँ

कल्पना को

भाव से तक़दीर देता हूँ

आते गये जाते गये

मौसमों का लेखा-जोखा

क्या बतायें

अमराइयों को सब पता है


फर्क कितना होता है कम

जानी और फ़ानी होने में

फर्क कितना होता है कम

साँसों के साथ जीने और मरने में

मैं कितनी दूर बैठा महफ़िलों से

क्या बतायें

शहनाइयों को सब पता है

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