खोल दो गुफाओं के द्वार
एक बार / फिर एक बार
है विचित्र बात यह
थी विचित्र रात वह
चाँद को निहारते
बेसुध थी रात वह
सुबह का किसे था इंतज़ार
ढँका-मुँदा सब कुछ
सूरज से परदा है
थम गई बातों की नाव
कसक में आ गया ठहराव
नमकीन सी हो जाये तकरार
जाने-अनजाने में
सुनने-सुनाने में
कोई नहीं आता है
कोई नहीं गाता है
धीमी सी हो जाये पुकार
अमराई हो
या सड़क हो सपाट
बरखा हो
या चमकीली धूप
इधर भी आने दो बहार
ओस बिन
फूल का निखरना क्या
राग बिन
गीतों का सजना क्या
क्या हुआ / था खत का इकरार
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