Monday, February 25, 2008

अपरिचित आवाज़ 7

एक उदासी

मुझमें प्रवेश करती जा रही है

कम होती जा रही है

अपरिमित आस्था

तुम्हारे अद्भुत सामर्थ्य में

तुम्हारे अनुपम सौन्दर्य में

तुम्हारे तीखे दर्प में



एक प्यास

मुझमें बुझती जा रही है

बढ़ती जा रही है

अनिश्चित आशंका

हमारे अद्भुत विकास में

हमारे अनुपम इतिहास में

हमारे तीखे दर्द में



एक फाँस

मुझमें धँसती जा रही है

मौन गूँजती जा रही है

अपरिचित आवाज़

किसी के अद्भुत आलाप में

किसी के अनुपम संताप में

किसी के तीखे गान में

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