Monday, February 25, 2008

चपला 68

इस समूची स्रष्टि में

तुम चपला सी कौंधतीं

और मैं निहारता एकटक



ठहरते घूमते नयन / निमिष भर

मेरे नयन पर

निमिष बदले सदी में

और मैं क्या माँगता भरसक



साफ-साफ दिखती

एक झिझक

इच्छा बहकाती बहक-बहक

और मैं क्या जाँचता कसक



सूनी हो गई स्रष्टि सारी मेरे लिये

लोप हो गईं

तुम कौंध कर

और मैं ठहरता कब तलक

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