इस समूची स्रष्टि में
तुम चपला सी कौंधतीं
और मैं निहारता एकटक
ठहरते घूमते नयन / निमिष भर
मेरे नयन पर
निमिष बदले सदी में
और मैं क्या माँगता भरसक
साफ-साफ दिखती
एक झिझक
इच्छा बहकाती बहक-बहक
और मैं क्या जाँचता कसक
सूनी हो गई स्रष्टि सारी मेरे लिये
लोप हो गईं
तुम कौंध कर
और मैं ठहरता कब तलक
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