Monday, February 25, 2008

पत्तियों से छनती धूप 66

तुम्हारी याद

पत्तियों से छनती धूप है



तुम्हारी बात

ऐसे टकराती तट से जैसे

लहर के बाद लहर

ऐसे रहती साथ मन के जैसे

प्रहर के साथ प्रहर

तुम्हारा साथ

ओस की चमकती बूँद है



सुख भरी हवा मिलती कहाँ अब

प्यास बैठी ढोकर अमरता

बादल बिखरते, कोहरा घनीभूत है

दृष्टि कितनी भी विकल हो

दूरियों की धुँध है

तुम्हारी आहट

सदाओं की अनुगूँज है



तुम्हारा अहसास

जैसे आत्मा का / नहीं मिलता

नहीं मिलता जैसे परमात्मा

न जाने कब फेर ले मुँह

पकड़ने रास्ता कोई खास

तुम्हारी आँख

जीवन का निखरता रूप है

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