लग रही हो तुम
एक किरण सूरज की
एक अच्छी कविता का सुख
या अच्छा सा कोई गीत पुराना
सुनाये कोई / गुनगुनाये कोई
करो बात कोई
वक्त-बेवक्त मीठी सी
लाल धुँयें में सज जाता है चन्दा
धुँआ चूल्हों का / काजल चन्दा का
नज़र बचाती है नज़र प्यार की
लग रही हो तुम
एक आहट सुबह की
जाने-अनजाने रिसता है संगीत
धड़कन और ख्याल का
भारी है सिक्का / समय के जाल का
जग रही हो तुम
अँधियारे में दीप सी
No comments:
Post a Comment