Monday, February 25, 2008

आहट सुबह की 65

लग रही हो तुम

एक किरण सूरज की



एक अच्छी कविता का सुख

या अच्छा सा कोई गीत पुराना

सुनाये कोई / गुनगुनाये कोई

करो बात कोई

वक्त-बेवक्त मीठी सी



लाल धुँयें में सज जाता है चन्दा

धुँआ चूल्हों का / काजल चन्दा का

नज़र बचाती है नज़र प्यार की

लग रही हो तुम

एक आहट सुबह की



जाने-अनजाने रिसता है संगीत

धड़कन और ख्याल का

भारी है सिक्का / समय के जाल का

जग रही हो तुम

अँधियारे में दीप सी

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