Monday, February 25, 2008

साँस मेरी महक रही 64

है क्या अधिक मीठा

चुम्बन से तुम्हारे

है और क्या अधिक दुर्लभ

बाहों के हार से



सब भूमिकायें निभातीं

मुझे रखने जिन्दा

आईं थीं धरा पर

हव्वा के रूप में

तुमने ही रचा है / संसार सारा

और ये अहसान ऊपर से

माँगा है / मेरा सहारा

है और क्या अधिक रहस्यमय

आवरण से तुम्हारे



जब होता हूँ / पास तुम्हारे

तुम्हारा ही होता हूँ

तुम्हारा ही / पूरा का पूरा

जब जगत में उतर जाता

साथ बस इतना / दिखता

छोर आँचल का तुम्हारा

है और क्या इससे बड़ा सुख

महक रही साँस मेरी / साँस से तुम्हारे

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