Monday, February 25, 2008

स्वप्न का जागरण 62

सपनों में जाना

वस्तुत: जाग जाना है



तेरी आँखों की झील में

तैरता है अक्स मेरा

जलन से ढलक जाती हैं

पलकें तुम्हारी

ढूँढने एक गंध

जन्म-जन्मान्तर की जानी-पहचानी

उतर जाता है मन

अँगुलियों की पोरों के सहारे

तेरी अलकों के घने जंगलों में



कभी खो जाना

वस्तुत: पथ पा जाना है



चाँद को घेरे बादल

इठलाते / बल खाते बादल

जब छा जाते हैं मुझ पर

छूट जाता हूँ समय के पाश से

जब नहीं मिलती

मेरी-तुम्हारी लय

नहीं मिलता

रोमांच का अनुनाद

लेने तुम्हारी खोज-खब़र

करता हूँ सम्वाद आकाश से



अँधेरों की अति

वस्तुत: उजालों को पा जाना है



रुका नहीं कुछ भी जगत का

चौकड़ियाँ भरता सूरज

कहाँ देता है दिखाई

तुम्हारे पल्लू सा खिसकता रहा चाँद

कब कहाँ ठहरी है गंध बौराई

आँगन की धूप

लाँघती बरामदे को

कुछ नहीं रुकता

तुम भी क्यों रुकोगी



आँखों से ओझल हो जाना

वस्तुत: दिल में घर कर जाना है



किसकी तलाश है

भागती है नदी

मौसम / दिन

साल सब भागते हैं

क्या खोजता फिरता है चाँद

चाबुक समय का बरसता है

बेहिचक / बिला नागा

जब विराम पाती हैं बाह्य यात्रायें

प्रारम्भ होती है यात्रा

अंतर्मन की

तलाश / यह जानने की तलाश

किसकी करनी है तलाश



जिसे पा जाना

वस्तुत: खो जाना है

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