उस रात / विमुग्धा की बाँहें
और मेरी बाँहें
अनुभूतियाँ दोबारा
मन जीना चाहे
बरखा भी रुकती सी आती
बूँदों पर कनखी / चंदा की
कुछ उजियारा / कुछ अँधियारा
कुछ बदली छाई तेरे बालों की
उस रात / विगलित दर्प का प्रकाश
और मेरी राहें
पहरों मौन / पहरों बातें
दुनिया से बाहर / जीवितों में / न समाते
पार / समय की सीमा के पार
मिलन के स्थिर कालखण्ड में
क्षण भर की बिछुड़न / मन / अकुलाते
उस रात / कल्प वृक्ष था बाँहों में
और मेरी चाहें
खब़र / हवा तक को न थी
न बही थी बात / बहारों में
न तो जाना / झिलमिल-झिलमिल तारों ने
हम हो गये थे अकेले / हजारों में
न रखी कोई जात / गुमनाम हो गये
उस रात / नदी थ तुम
और मेरी बाँहें
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