निमीलित / जैसे
पोखर पर पड़तीं रश्मियाँ
खेलतीं खिल-खिल
चौंधियाने वाले पल
आँखों को मन की
दिखलातीं अँधेरा
उनकी राह सींचते बादल
किया है जिन्होंने स्वागत समय का
निर्लिप्त / जैसे
सूरज और चाँद
बसंत और ठूँठ
मिल जाये मन को स्पर्श मन का
अनुराग की सुगन्ध लिये
जल प्रीति का
क्या हुआ / फ़ासिल हैं ज़माने के
खिल जायेंगे
नि:संकोचिका / जैसे
बयार हो
नगाड़े बजाती आतीं
या फुसफुसाहटें
कभी थम जाती हो / ऐसे भी आती हो
मेरी आँखों पर रखतीं
चुपके से / फोहे सी अँगुलियाँ
बिखर जायेगा अणु-अणु
एक बार फिर / आँखें बंद कर
मुझे निहार लो तुम
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