अंतहीन विस्तार लिये
बिम्ब
करते रहते हैं
चुम्बकित
धमनियों में नाचते लौह-कणों को
स्मृतियों की बहक जातीं
धुनें
विलोकतिं जब
बिम्ब के विस्तार को अनंत से
एक वृत्त पूरा हुआ
जीवन-कर्म का
सामना है एक और लहर का
कर्ज है साँसों का
चलो, करें शुरु
एक जीवन नया
जैसे अभी तक कुछ हुआ ही नहीं
प्रारम्भ को होता है पता
अंत का
अनंत तक के अंत का
पता नहीं है / तो बस
पता नहीं है अंत
बिम्ब के अंतहीन विस्तार के अंत का
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