Monday, February 25, 2008

मौन सम्वाद 52

तुमने कहा मुझसे

मत रोको मुझे / मत टोको मुझे

करने दो बस अपने मन की

कह-कह कर की मनमानी

मेरी एक न मानी

मेरे हिस्से आया मौन

कल तक पट्टी थी आँखों पर मेरी

अब मुँह पर ताला है



मन ही मन कहा मौन से

ऐसी कोई बात नहीं है

मेरी भी कुछ बातें सुन लो

तुमको टाल नहीं पाता

तुम्हारा कहना जरा सा

भारी पड़ता है

उससे तो कम लगती है लू

मई के महीने में

या बरसती बारिश

सीने पर दिसम्बर के



मत कहो / कम से कम

तुम तो मत ही कहो

अँगुली उठाती हो

हवा की इस थिरकन से

मैं समाने लगता हूँ / धरा की कोख में

गिर जाता हूँ / उस नज़र से

खुद को देखता हूँ जिस नज़र से



प्रेम ने, मैंने नहीं

बाँधी थी पट्टी कभी आँखों पर

हर हलचल की शर्त होती है

चाहे कितनी भी ठोस हो ज़िन्दगी

विचार / अनुभूतियाँ / प्रेम / यथार्थ

सबमें पर्त होती है



खुशी से दिन बीता

बीती शाम कहकहों में

सुबह दिखते ओस कहते

रोना भी है ज़िन्दगी में



दृष्टि सचमुच सबल है

ध्वनि को कष्ट मत दो

दो मुझे मौन दो

ज्ा़िन्दगी में कौंध दो

न हो ध्वनि तदुपरान्त

मुझे मौन से / प्रेम दो

मौन दो / मौन से

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