Monday, February 25, 2008

श्रृंगार 50

मालूम है मुझे

वेणी से अच्छी लगती हैं तुम्हें

अँगुलियाँ मेरी

बालों में तुम्हारे



मेरे गुलाबों से

गुलाबी हो जाता चेहरा तुम्हारा

और आँखें



मेरे स्पर्श से

करती हो तुम उबटन

मेरे किये श्रृंगार

होते हैं तुम्हारे अंत:भूषण

जिन्हें देख पाता हूँ मैं

सिर्फ मैं



तुम्हारे उलाहनों के साथ

खोजता हूँ तुम्हें / सिर्फ तुम्हें

तुम्हारी ही देह में

मालूम है मुझे

खोई हुई हो तुम मुझमें

सिर्फ मुझमें



और मैं तलाशता रहता हूंॅ

तुम्हें भुवन भर

देखने नयनों में तुम्हारे

अपना भुवन



मैं तुम्हारा श्रृंगार हूँ

या अपने श्रृंगार की

इति की है तुमने मुझमें

तुम मेरा जीवन हो

तुम हो अर्थ मेरे होने का

जानता हूँ मैं / और निश्चित

सिर्फ तुम ही



तुम्हारी ध्वनि देती है

मुझे आँखें

अपने कानों से देखता हूंॅ

मैं तुम्हें

कल्पना आकाश कुसुम होती है

और मैं चाहता हूंॅ सिर्फ / निहारना

हो सके तो

अपनी अँगुलियों से

तुम्हारे बालों को सँवारना

और वह भी / अनवरत

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