Monday, February 25, 2008

मिलन 49

कितनी विचित्र बात है

मिलते हैं हमारे नाम

अपनी अर्थवत्ता में

मिली है हमें एक सी दृष्टि

देखने की स्रष्टि को



मिलती है हमारी समझ

मिलती हैं हमारी रूचियाँ

मिलते हैं हमारे विचार

मिलती है हमारी चाहत



मेरी कविता पर क्यों आसक्त हो तुम

मेरी समझ कहाँ इतनी

बस इतना पता है

सब कुछ मिलता है हमारा

पर हम नहीं मिले कभी

No comments:

फ्री डाउनलोड