कितनी विचित्र बात है
मिलते हैं हमारे नाम
अपनी अर्थवत्ता में
मिली है हमें एक सी दृष्टि
देखने की स्रष्टि को
मिलती है हमारी समझ
मिलती हैं हमारी रूचियाँ
मिलते हैं हमारे विचार
मिलती है हमारी चाहत
मेरी कविता पर क्यों आसक्त हो तुम
मेरी समझ कहाँ इतनी
बस इतना पता है
सब कुछ मिलता है हमारा
पर हम नहीं मिले कभी
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