Monday, February 25, 2008

साँस की फाँस 47

अपने नाखूनों से

अपने दाँतों से

जब तुम निकालती हो

मेरी हथेली की फाँस

ईर्ष्या से

इस भागती दुनिया की

रुक जाती है साँस



जब अलग होते हैं

तुम्हारे होंठ

मेरी हथेली से निकाल कर फाँस

तब दर्द

वहाँ कुछ घट जाता है

पर जाता नहीं कहीं

कहीं भीतर ही भीतर पैठ जाता है

तुम्हारी भी सामर्थ्य के बाहर

और अधिक मीठी चुभन लिये

बना रहता है तब तक

जब तक

न रुक जाये मेरी साँस



जब तुम निकालती हो

मेरी हथेली की फाँस

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