Monday, February 25, 2008

अपना घर 41

मैं तुम्हारे लिये बनाना चाहता था

एक अच्छा घर

बहुत अच्छा घर



हुईं कई बैठकें

दिल और दिमाग की

कुछ ज़ुनून भी ता़री था

कुछ दुनियावी ज़रूरातों का

तक़ाजा भी था



प्यार मौत की गोद में है

ताजमहल में

वहाँ विछोह की व्यथा है

यहाँ हर्ष है साथ का

चाहा, बिखरी हुई हो ज़िन्दगी

अपने घर में

हो बोनसाई सी ही सरीखी

पर हो पूरी की पूरी क़ायनात

अपने घर में



घोंसलों की बुनावट को रखा ध्यान में

वे घर की परम्परा के

स्तम्भ हैं / प्रकाश के

जरूरतों को सहेजा, रूमान को समेटा

बना पाया एक घर, ईंट-गारे का

भावनाओं से जुड़ा, सपनों से मढ़ा



अब की ज़िन्दगी में

कृृपाँक से ही सही

पास कर देना

ताकि जा सकूँ अगली कक्षा में

बना सकूँ और बेहतर घर

तुम्हारे लिये, अपना घर

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