Monday, February 25, 2008

सुबह से शाम 39

भोर में, सन्ध्या को

जब मिलते और बिछुड़ते हैं

रात और दिन

फूल और ओस

हर्ष और विषाद

पृथ्वी और सूरज



भींग जाता हूँ मैं

हमारे क्षणिक मिलन और बिछुड़न की

स्मृृतियों की स्मृृति से

हर सुबह, हर शाम

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