Monday, February 25, 2008

दर्पण पर बिन्दी 33

छूटी नहीं आदत तुम्हारी

हमारी आलमारी के दर्पण पर

बिन्दी चिपकाने की



बिन्दी भी इतनी ठीक

नाप-तौल कर

छोड़ जाती हो / दर्पण पर

गड़ती है मेरे सीने पर

जब देखता हूँ मैं स्वयं को

बिन्दी से सजे / इतराते दर्पण में





गड़ती है वह ठीक उसी जगह

जहाँ सचमुच चिपक जाती है

बिन्दी तुम्हारी सीने पर मेरे

जब होती हो तुम

पास से पास / मेरे



कोई धमाका नहीं होता

गोली सी लगती है

बिन्दी तुम्हारी

नाप-तौल कर रखी गई

हमारी आलमारी के दर्पण पर

पास न होने पर / तेरे

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