छूटी नहीं आदत तुम्हारी
हमारी आलमारी के दर्पण पर
बिन्दी चिपकाने की
बिन्दी भी इतनी ठीक
नाप-तौल कर
छोड़ जाती हो / दर्पण पर
गड़ती है मेरे सीने पर
जब देखता हूँ मैं स्वयं को
बिन्दी से सजे / इतराते दर्पण में
गड़ती है वह ठीक उसी जगह
जहाँ सचमुच चिपक जाती है
बिन्दी तुम्हारी सीने पर मेरे
जब होती हो तुम
पास से पास / मेरे
कोई धमाका नहीं होता
गोली सी लगती है
बिन्दी तुम्हारी
नाप-तौल कर रखी गई
हमारी आलमारी के दर्पण पर
पास न होने पर / तेरे
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