Monday, February 25, 2008

बिखरे प्रेम पत्र 27

आँखों पर चढ़ा चश्मा

पास का और दूर का भी

पूरी की पूरी स्मृतियाँ

मन के स्क्रीन पर दौड़ आती हैं

किसी मेगा सीरियल की तरह



तुम्हारी हँसी / उन्मुक्त हँसी

जैसे बहता हुआ जल

बह जाता है ढलानों की ओर

वैसे ही बह जाती है वह हँसी

मन के कछारों में

मेरे लिये पहली हँसी



खिलखिलाहट अभी भी

ध्वनिपटल पर देती है अनुनाद

और मैं सिहर उठता हूँ आज भी

जैसे तब सिहरा था

जब तुमने लिखा था / रेत पर

मेरे लिये पहला प्रेम पत्र



और भी न जाने कितने

रेत पर / पेड़ पर

कभी नहीं रख पाया मैं

पत्र तुम्हारा एक भी

दिल के साथ / अपने पास



क्या होगा

जब स्मृतियाँ भी लगेंगी चुकने

क्या रह जायेगा मेरे पास

बीत रहे हैं दिन / आज की तरह

एक के बाद एक

पिघल रही है मोम

लौ को पता नहीं

कितना समय है शेष



चलो ले आयें चल कर

रेत पर लिखे / पेड़ पर उकेरे

अपने प्रेम पत्र

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