Monday, February 25, 2008

गंध 26

मुझे अच्छी लगती है गंध

प्रकृति के हर पन्ने पर

छिड़की हुई है गंध



कैद हैं छोटे-बड़े ताबूत में

जिन्दा दऩ हैं हम

ताबूत विचार हो

देश हो या देह हो / रेंगते हैं

उड़ भी लेते हैं कभी-कभी

जिन्दगी के हर लम्हे की

खिड़की हुई है गंध



बड़े जतन से

रख देता हूँ फूल सिरहाने

शायद बालों तक जा पहुँचें

चाह कहाँ पूरी होती है

दूर कहाँ दूरी होती है

तुम्हारी देह-गंध के द्वारा

झिड़की हुई है गंध



मुझे अच्छी लगती है गंध

तुम्हारे रोम-रोम पर

ठिठकी हुई है गंध

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