Monday, February 25, 2008

जुगनुओं के साथ 25

पेड़ों के बीच

बहती धीमी हवा

और कस जाते हमारे हाथ



बहुत ही मद्धम बरसता पानी

अटकता फूलों,

पत्तियों और डालियों पर

टपकता होंठ पर

कभी-कभार भाग्य सा

वही स्पर्श / वही उष्मा

फिर दिलाता याद



लगता ढूँढ़ने

कोना उजला / मन का

कोई जगह ज्यादा अँधेरी

उभर आती चाँदनी

बादलों की जुल्फ़ें सँवारती

मुझे फिर सुनाई पड़ती एक आवाज़

चिर-परिचित / तुम्हारे स्पर्श सी

हिरणियों से भाग जाते क्षण

क्या फिर लौटेंगे कभी उस जगह

स्मृति ले जाती है हमें जिस जगह

खत्म होती ही नहीं बात



भींगती जाती है सारी धरा

भागती फिरती है हवा

न जाने किसकी तलाश है

खो गया है चैन / साथ मन के

उतर गया है जंगलों में

जुगनुओं के साथ

पेड़ों के बीच

बहती धीमी हवा

और कस जाते हमारे हाथ

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