Monday, February 25, 2008

सुंदरतम साक्षात्कार 24

सुंदर थीं घड़ियाँ

सुंदर थी शाम सलोनी

सपनों की सुंदर थी सैर वह

सुंदर थी अब तलक न सुनी कहानी

कोसों थी दूर नींद

सौतिया डाह के मारे

पलकें तरसीं मिलने को पलकों से



सुंदर था कल फिर आऊँगा कहता सूरज

सुंदर था धीरे-धीरे झाँकता-सकुचाता चाँद

सुंदर थी मद्धम-मद्धम बहती हवा

सुंदर थी एक अद्भुत गंध सुहानी

जैसे श्वेत-रक्तवर्ण कमलों की-

घाटी के खुल गये मायावी द्वार



आत्मा तक को गई सिहरा

संस्कारों को दुलरा

सुंदर था भींगना मन का

पहली बरखा के साथ

सब कुछ था सुंदर, अद्भुत पावन



सृष्टि में एक साथ

इतना सब कुछ सुंदर था

या तुम थीं

इन सब के बीच सुंदरतम

उस पल में

इसीलिये सब कुछ सुंदर था

उस पल में

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