सूख गये फूल सभी
थक गईं आँखें
चली गई लौट कर
रूठी गुस्सीली बहार
और कितना इंतज़ार?
निहारता असीम आकाश
टटोलता खिसकती ज़मीन
दिमाग के दरीचों के
ठस्स हो गये द्वार
और कितना इंतज़ार?
स्मृतियों की पोथी के
पलटे पन्नों पर पन्ने
सुधियों के सुर
बार बार खनके
नीरस लग रहा सारा संसार
और कितना इंतज़ार?
छूटती नहीं निगोड़ी आशा
प्यास को आँसुआंे की दिलासा
सुलझाते जिसे जन्मों में
वह उलझा धागा है प्यार
और कितना इंतज़ार?
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