Monday, February 25, 2008

उलझा धागा है प्यार 28

सूख गये फूल सभी

थक गईं आँखें

चली गई लौट कर

रूठी गुस्सीली बहार

और कितना इंतज़ार?



निहारता असीम आकाश

टटोलता खिसकती ज़मीन

दिमाग के दरीचों के

ठस्स हो गये द्वार

और कितना इंतज़ार?



स्मृतियों की पोथी के

पलटे पन्नों पर पन्ने

सुधियों के सुर

बार बार खनके

नीरस लग रहा सारा संसार

और कितना इंतज़ार?



छूटती नहीं निगोड़ी आशा

प्यास को आँसुआंे की दिलासा

सुलझाते जिसे जन्मों में

वह उलझा धागा है प्यार

और कितना इंतज़ार?

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