Monday, February 25, 2008

साझी अनुभूति 19

काश मैं रो सकता

जैसा एक बार पहले रोया था

जब बस रो ही सकता था



मेरे आँसू बह-बह कर

सोचते हैं बार-बार

मैं उस वक्त नहीं था

तुम्हारे पास

एक रात्रि जागरण करने

तुम्हारे सिरहाने



तुम्हारे मातृत्व से दमकते

चेहरे को / प्यार से निहारने

तुम्हें हल्के से

बाहुपाश में बाँधने

तुम्हारे सिर को

अपनी गोद में सुलाने

या फिर तुम्हारा माथा सहलाने



ताकि बता सकूँ / जता सकूँ

हालॉकि प्रेम है एक बकवास

पर मैं और तुम

ऐसा नहीं करेंगे कभी महसूस

No comments:

फ्री डाउनलोड