Monday, February 25, 2008

पत्थर के आँसू 18

मत बहाओ

आँसू सामने मेरे

तुम्हारी आँखों से नि:सृत

मेरी आत्मा तक रिस जाते हैं



पत्थर का मन भी

पसीजता है

बरसात लगती है घेरने

एक लपट सी उठती है

खौलने लगता है रूधिर

शिराओं के भीतर ही भीतर

हाहाकार घुट जाता है

पत्थर के होंठ नहीं हिलते

पत्थर की आँख नहीं भींगती



सरल है आँसू बहाना

कठिन है आँसू पी जाना

हो सके तो / मेरे बाद भी



आँसू मत बहाना



कम से कम / इतना करो वादा

और इसे सचमुच निभाना

आँखों से उच्चारित

यह गीत / सामने मेरे

मत गुनगुनाना



इन में मैं कहाँ तैर पाऊँगा

मत फैलाओ यह सैलाब / सामने मेरे

हाथ हिम्मत के थक रहे हैं

जिन्दगी की डोर है

मुस्कान तेरी

आँसुओं की सैर है

मौत मेरी

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