तुम इतनी पास हो मेरे
तुम इतनी साथ हो मेरे
जैसे धरती और गगन
खो जाया करता था मैं
मड़ई-मेलों की मस्तियों में
मन की बंजारा बस्तियों में
डूब जाया करता था मैं
नदी के जल में
भीतर / और भीतर बहता हुआ
आज भी जब घिर जाता हूँ
डूब जाया करता हूँ मैं
अंतस्तल की गहराई में
लगते हाथ और फिसलते जाते सीप
स्मृतियों के / आशाओं के
मैं उठता जाता अनुभूतियों से
ऊपर / और ऊपर सहता हुआ
तुम इतनी पास हो मेरे
तुम इतनी साथ हो मेरे
जैसे गंध और पवन
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