Monday, February 25, 2008

तुम और मैं 17

तुम इतनी पास हो मेरे

तुम इतनी साथ हो मेरे

जैसे धरती और गगन



खो जाया करता था मैं

मड़ई-मेलों की मस्तियों में

मन की बंजारा बस्तियों में

डूब जाया करता था मैं

नदी के जल में

भीतर / और भीतर बहता हुआ



आज भी जब घिर जाता हूँ

डूब जाया करता हूँ मैं

अंतस्तल की गहराई में

लगते हाथ और फिसलते जाते सीप

स्मृतियों के / आशाओं के

मैं उठता जाता अनुभूतियों से

ऊपर / और ऊपर सहता हुआ



तुम इतनी पास हो मेरे

तुम इतनी साथ हो मेरे

जैसे गंध और पवन

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