Monday, February 25, 2008

नाम तुम्हारा 16

अँधेरों में

साँप हो जाती है

रस्सी भी

नाम में भी

काम में भी



वही होते हैं जज्ब़े

वही होते हैं अहसास

कोलतार पर पड़ती बारिश

ज़ेहन को कुरेदती

जगा देती दिल में

मिट्टी की पहली सोंधी बास

शहर में भी

गाँव में भी



जब मिले और फिर

झुक जाये नज़र

नज़ारा समेट कर

नज़रों में

सब कुछ मिल जाता है

सब कुछ खो जाने के बाद

खुद जाता है

नाम तुम्हारा ज़ेहन में

भोर में भी

साँझ में भी

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