अँधेरों में
साँप हो जाती है
रस्सी भी
नाम में भी
काम में भी
वही होते हैं जज्ब़े
वही होते हैं अहसास
कोलतार पर पड़ती बारिश
ज़ेहन को कुरेदती
जगा देती दिल में
मिट्टी की पहली सोंधी बास
शहर में भी
गाँव में भी
जब मिले और फिर
झुक जाये नज़र
नज़ारा समेट कर
नज़रों में
सब कुछ मिल जाता है
सब कुछ खो जाने के बाद
खुद जाता है
नाम तुम्हारा ज़ेहन में
भोर में भी
साँझ में भी
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