Monday, February 25, 2008

बिन तुम्हारे 12

रात के पहले प्रहर से

डूबने लगता है मन

डूबते सूरज के साथ

बिन तुम्हारे



हृदय के घाव की लाली से

लोलित / दिग्-दिगन्त

बिन तुम्हारे / पास के अहसास के

बिन तुम्हारे / उगलता है आग चाँद भी

स्मृतियों के तारे / लगते हैं टिमटिमाने

काटती है शीतल मंद समीर / बिन तुम्हारे



तारों भरा आकाश

देता ही है सुख / खा़लिस सुख

सर्वदा तुम्हारे पास होने पर

लगती है दूरी भली / तारों की

तुम्हारे दूर होने पर

नापता हूँ / उस पैमाने से

दूरी तुम्हारी / बिन तुम्हारे



कर लेता हूँ याद / स्वाद चुम्बनों के

और फिर उतर आती है रात

कान / खड़े हो जाते हैं

सुनने को आहट / हल्की / हवा सी

तुम्हारे चलने-फिरने की / आहट

व्याकुल करती हैं / चौकाती हैं

पदचापों की मृग-स्वप्निकायें

जीने में कोई स्वाद नहीं / बिन तुम्हारे





ढॅक लेता है आँखों को

यादों से उतरा / उजरा रूप

यह भी न हो दूर / सोच कर

ढलक जाती हैं पलकें

गहरी होती जाती रात / लगता

बिखर गईं तुम्हारी अलकें

गहरी होती जाती निद्रा / साथ तुम्हारे

पर कोई नहीं उठाता / ऊगते सूरज के साथ

ऊगते सूरज के साथ

डूबने लगता है मन / बिन तुम्हारे



रात के पहले प्रहर से

डूबने लगता है मन / डूबते सूरज के साथ

बिन तुम्हारे

ऊगते सूरज के साथ / डूबने लगता है मन

बिन तुम्हारे

No comments:

फ्री डाउनलोड