तुमने कहा मुझसे
मत टोको मुझे, मत रोको मुझे
कह-कह कर ऐसा
की अपनी मनमानी
मेरे हिस्से आया मौन
कल तक बँधी थी पट्टी आँखों पर
अब ताला है मुँह पर
कुछ सुन लेतीं मेरी भी
नहीं, कुछ खास नहीं है कहने को
तुमको ही टाल नहीं पाता कभी
तुम्हारा कहना जरा सा
बड़ा भारी लगता है
जैसे हो बारिश सीने पर दिसम्बर के
कम भासती है लू, मई के महीने में
मत कहो, कम से कम
तुम तो मत ही कहो
अँगुली उठाती हो
हवा की इस थिरकन से
मैं लगता हूँ समाने धरा की कोख में
गिर जाता हूँ उस नज़र से
देखता हूँ खुद को जिस नज़र से
प्रेम ने ही बाँधी थी कभी आँखों पर
सम्बन्धों में भी कुछ शर्त होती है
कितनी भी ठोस क्यों न हो जिन्दगी
सिद्धान्त, विचार, आदर्श और अनुभूतियाँ
सब में पर्त होती है
खुशी से दिन बीता
बीती शाम कहकहों में
सुबह नज़र आते ओस, कहते
रोना भी है जिन्दगी में
दृष्टि इतनी सबल है
ध्वनि को कष्ट मत दो
दा,े मुझे मौन दो
जिन्दगी की कौंध दो
न हो ध्वनि तदुपरान्त
मुझे मौन से
प्रेम दो, मौन दो
मौन से
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