Monday, February 25, 2008

दुर्लभ दर्शन 10

दिखता नहीं अब

चाँद पूरा साफ-साफ

आँखें हो चलीं बूढ़ीं



अपने मन से बह रही हो

हवा ऐसी दिखती नहीं अब

खुश़बू हो गई लापता

बातें हो चलीं झूठीं



कहाँ है अब कोई जो चल रहा हो

कारवाँ ऐसा दिखता नहीं अब

मंज़िल हो गये किस्से तिलस्मी

रातें हो चलीं जूठीं



सदी की सदी / सरक रही है

व्यग्रता ऐसी

प्रयासों की दिखती नहीं अब

साक्षात्कार सूरज का कहाँ नसीब

साँसें लग रहीं रूठीं

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