अब भी रखा है
पंख मेरे पास
जो रखा था तुमने कभी
उस किताब में
मेरे लिये
बिछुड़ गया है
पंख अपने ठौर से
फिर भी / मन को उड़ा ले जाता है
खोल देता है पृष्ठ
सुनिश्चित / उस किताब के
गुनगुनाती हो तुम जिसमें
मेरे लिये
पता नहीं / कहाँ थमा है मौसम वह
जो झंकृत कर दे तार
वाणी के
सुना सकूँ / वो कवितायें सभी
जो लिख रखीं हैं मैंने
तेरे लिये
परदेस साईबेरिया तक के पंछी
मिला करते हैं / याद से
फ़ासला तब जाता है बढ़ता
जब बढ़ते नहीं कदम / विश्वास के
मरीचिका का दौर है
बची ही नहीं अब / ज़मीन प्यार की
हमारे लिये
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