दर्पण सामने था
क़मीज के बटन लगाते समय
दिखा मुझे
एक लाल सा धब्बा
वैसा ही दमक रहा था वह
दमकती है जैसे बिन्दी तुम्हारे भाल की
या सूरज सुबह का
चौंका मैं
लगा सोचने
कब आईं थीं तुम
इतने पास मेरे
कब टाँक दिया था
मेरे क़मीज के आकाश पर
एक लाल तारा
स्मृतियों के ताज़े पन्नों पर
ऐसे दृश्य नहीं झलके
कोशिश की
प्रयत्नों के सूरज से
हटाने की उस लाल तारे को
क़मीज के आकाश से
नहीं हटा सका मैं
उधर नाश्ते की मेज़ पर
ठण्डा हो रहा था
ताबड़तोड़ जल्दी में
तुम्हारी चिन्ता से सिका-पका
मेरा थोड़ा सा खाना
कुछ ठीक ही खाकर छोड़ूँ घोंसला तुम्हारा
यह चिन्ता रहती है तुम्हें सदैव
उधर आसमान पर
तेजी से भाग रहा था सूरज
मेरे काम की शुरूआत
जल्दी नहीं हो पाती
चल सकूँ साथ सूरज के
यह भी चिन्ता रहती है तुम्हें सदैव
तुम सदा की तरह
निगाहों से आवाज़ देतीं
खोज रहीं थीं मुझे
अपने छोटे से घोंसले में
मुझे दर्पण के सामने ठिठका देख
तुम कुछ सकुचाईं
कहा तुमने
जल्दबाजी में बटन टाँकते समय
अँगुली में चुभ गई थी सुई
मेरे खून की एक बूँद ने
खराब कर दी तुम्हारी क़मीज
और तुम्हारा समय भी
कहा मैंने
समय खराब कहाँ हुआ
सज गया मेरा समय
तुम्हारे खून की एक बूँद ने
सँवार दिया
मेरे जीवन का
बाकी बचा हुआ समय भी
No comments:
Post a Comment