कितने ही कठिन हों रास्ते
या हों
जितने हो सकते / सरल उतने
जब पैर ही न हिलें तो
न मंज़िल और न ही संतोष
चरैवेति चरैवेति का
क्या कहें
उसने कहा
क्या पैरों से ही चला जाता है
कहते हैं
मन भी होता है चलायमान
कहा मैंने
मन के पैर नहीं
पर होते हैं
इसीलिये तो खलता है / कभी-कभी
पैरों का न चलना
परों का न हिलना
क्या कहें
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