अपने नाखूनों से
अपने दाँतों से
जब तुम निकालती हो
मेरी हथेली की फाँस
ईर्ष्या से
इस भागती दुनिया की
रुक जाती है साँस
जब अलग होते हैं
तुम्हारे होंठ
मेरी हथेली से निकाल कर फाँस
तब दर्द
वहाँ कुछ घट जाता है
पर जाता नहीं कहीं
कहीं भीतर ही भीतर पैठ जाता है
तुम्हारी भी सामर्थ्य के बाहर
और अधिक मीठी चुभन लिये
बना रहता है तब तक
जब तक
न रुक जाये मेरी साँस
जब तुम निकालती हो
मेरी हथेली की फाँस
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