जब तुम्हारी याद दिल से जायेगी
तब समझ लूँगा मैं, अब तुम दूर हो
मन पर हर बिम्ब अभी यों अंकित है
ज्यों जल में हो वृक्षों की परछाई
मौसम सुगंध का आया है लेकिन
अपनों के दु:ख में लगती ज्यादा गहराई
कैसे यकीन करूँ मैं, अब तुम दूर हो।
डाली-डाली दहके हैं पलाश
कोई फागुन गीत नहीं गाता
कंठ अवरूद्ध है कोयल का
वंशी के स्वर को राग नहीं भाता
कैसे मान लूँ मैं, अब तुम दूर हो।
नई राह में नये फूल खिलते हैं
नई राह में नये शूल चुभते हैं
मन की हदों को पार कर
जग बाधाओं से हिम्मत हार कर
कह दोगी कि, अब थक कर चूर हो
तब समझ लूँगा मैं, अब तुम दूर हो।
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