रात के पहले प्रहर से
डूबने लगता है मन
डूबते सूरज के साथ
बिन तुम्हारे
हृदय के घाव की लाली से
लोलित / दिग्-दिगन्त
बिन तुम्हारे / पास के अहसास के
बिन तुम्हारे / उगलता है आग चाँद भी
स्मृतियों के तारे / लगते हैं टिमटिमाने
काटती है शीतल मंद समीर / बिन तुम्हारे
तारों भरा आकाश
देता ही है सुख / खा़लिस सुख
सर्वदा तुम्हारे पास होने पर
लगती है दूरी भली / तारों की
तुम्हारे दूर होने पर
नापता हूँ / उस पैमाने से
दूरी तुम्हारी / बिन तुम्हारे
कर लेता हूँ याद / स्वाद चुम्बनों के
और फिर उतर आती है रात
कान / खड़े हो जाते हैं
सुनने को आहट / हल्की / हवा सी
तुम्हारे चलने-फिरने की / आहट
व्याकुल करती हैं / चौकाती हैं
पदचापों की मृग-स्वप्निकायें
जीने में कोई स्वाद नहीं / बिन तुम्हारे
ढॅक लेता है आँखों को
यादों से उतरा / उजरा रूप
यह भी न हो दूर / सोच कर
ढलक जाती हैं पलकें
गहरी होती जाती रात / लगता
बिखर गईं तुम्हारी अलकें
गहरी होती जाती निद्रा / साथ तुम्हारे
पर कोई नहीं उठाता / ऊगते सूरज के साथ
ऊगते सूरज के साथ
डूबने लगता है मन / बिन तुम्हारे
रात के पहले प्रहर से
डूबने लगता है मन / डूबते सूरज के साथ
बिन तुम्हारे
ऊगते सूरज के साथ / डूबने लगता है मन
बिन तुम्हारे
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