Monday, February 25, 2008

तुम हो नहीं हूँ मैं 2

मैं देता हूँ

तुम लेती हो

स्पर्श / प्रेम / उष्मा / जीवन

मैं देता हूँ / आकाश हूँ

तुम लेती हो / धरती हो



जो जो / जितना-जितना

लेती हो

कई-कई गुना कर

कर देती हो वापस



तुम धरती हो

पूरी की पूरी / आकाश की

पैरों के नीचे ठोस

हमेशा जुड़ीं

पूरी देह में आँखें ही आँखें

घूमती रहतीं / मुझे निहारने

समूचा का समूचा



मैं आकाश हूँ

पता नहीं / किस-किस धरती का

और नहीं भी / किसी का भी

पूरा का पूरा



देखता दूर-दूर से

जो जो देता

लेने वापस कई-कई गुना



सिर्फ निहारता

मिल नहीं सका तुमसे

अब तक

तुमने ओढ़ रखे हैं

कई-कई रंग

मैं बिखरता रहा

टुकड़े-टुकड़े

देखने तुम्हें

आता रहा / जाता रहा



तुम अमर हो

जैसे कल्पना

तुम सफल हो

जैसे सपना

तुम सजल हो

जैसे आँख

तुम सक्रिय हो

जैसे पाँख



तुम धरती हो

मैं तुम्हें घेरता हूँ

बने रहने को

तुम धरती हो

तुम हो

मैं आकाश हूँ

नहीं हूँ

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